गुरुवार, मार्च 29, 2018

सूखा फूल मिला हो जैसे..... डॉ. वर्षा सिंह



भूली बिसरी याद जाग कर हलचल करती है दिल में
सूखा फूल मिला हो जैसे किसी पुराने नाविल में

एक हंसी दे जाता है और एक ख़ुशी ले जाता है
फ़र्क यही होता है जीवनदाता में और क़ातिल में

होना क्या था और हुआ क्या, भेद न मन कर पाता है
अर्थ बदल जाते हैं अक़्सर सपनों वाली झिलमिल में

यूं तो सूची बहुत बड़ी है, "लाइक" करने वालों की
लेकिन दोस्त वही सच्चा है काम जो आये  मुश्किल में

"वर्षा" नफरत के बदले में नफरत ही हासिल होती         छिपी हुई रहती है दुनिया नन्हीं सी इस्माइल में

🌹- डॉ. वर्षा सिंह

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