शनिवार, अप्रैल 21, 2018

दूर अभी है राहत-वर्षा ... डॉ. वर्षा सिंह

तपती धूप में छांह के सपने
जैसे अंजानों में अपने
बचपन को गलबहियां डाले
यादें आतीं किस्सा कहने
लम्बा अरसा बीत गया है
पहने ख़ुशियों वाले गहने
ख़ुश्क गला भी व्याकुल होकर
ठंडा पानी लगा है जपने
दूर अभी है राहत - '' वर्षा"
धरा-गगन सब लगे हैं तपने
    🌞 - डॉ. वर्षा सिंह

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