शनिवार, अक्तूबर 13, 2018

एक नज़र दिगम्बर नासवा की शायरी पर


Dr. Varsha Singh
ब्लॉग की दुनिया में एक बहुत ही जाना-पहचाना नाम है दिगम्बर नासवा। वर्ष 2006 से ज़ारी “स्वप्न मेरे”(http://swapnmere.blogspot.com) नामक उनका ब्लॉग उनकी सृजनात्मकता का आईना है।
20 दिसंबर 1960 को कानपुर उत्तर प्रदेश, भारत में जन्मे दिगम्बर नासवा एक कामयाब चार्टेड अकाउंटेंट होने के साथ ही एक बेहतरीन ग़ज़लकार भी हैं। उनकी रचनाएं दुबई अंतर्जाल और विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती रहती हैं। परिकल्पना ब्लोगोत्सव द्वारा 2010 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ गज़ल लेखन के पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 
दिगम्बर नासवा की ईमेल आई. डी. है - dnaswa@gmail.com
  
Digambar Naswa
आज मैं दिगम्बर नासवा की कुछ ग़ज़लें यहां प्रस्तुत कर रही हूं, जो बेहतरीन शायरी का नायाब उदाहरण हैं।
छोटी बहर की इस ग़ज़ल में नासवा ने तमाम तरह की विसंगतियों को बखूबी बयान किया है-

इरादा बुलबुला क्यों
अजब ये सिलसिला क्यों   
 
झड़े पतझड़ में पत्ते
हवा से है गिला क्यों

फटे हैं जेब सारे
हवा में है किला क्यों

गए जो खुदकशी को
उन्हें तिनका मिला क्यों

शहर में दिन दहाड़े
लुटा ये काफिला क्यों

विरह की आग में फिर   
तपे बस उर्मिला क्यों

छला तो इंद्र ने था
अहिल्या ही शिला क्यों

….. और ये ग़ज़ल देखें जिसमें वे ग़ज़ल के माध्यम से रूमानी कोमल भावनाओं को प्रकट करने में सक्षम हैं-

खिलखिलाती हुई तू मिली है प्रिये
उम्र भर रुत सुहानी रही है प्रिये

आसमानी दुपट्टा झुकी सी नज़र
इस मिलन की कहानी यही है प्रिये

कौन से गुल खिले, रात भर क्या हुआ
सिलवटों ने कहानी कही है प्रिये

तोलिये से है बालों को झटका जहाँ
ये हवा उस तरफ से बही है प्रिये

ये दबी सी हंसी चूड़ियों की खनक
घर के कण कण में तेरी छवी है प्रिये

जब भी आँगन में चूल्हा जलाती है तू
मुझको देवी सी हरदम लगी है प्रिये

बाज़ुओं में मेरी थक के सोई है तू
पल दो पल ज़िंदगानी अभी है प्रिये

नासवा की यह ग़ज़ल पाठकों के दिलों पर इस तरह गहरी छाप छोड़ जाती है कि इसे बार-बार पढ़ने का मन करता है -

अपने असूलों को कभी छोड़ा नहीं करते
साँसों की ख़ातिर लोग हर सौदा नहीं करते

महफूज़ जिनके दम पे है धरती हवा पानी
हैं तो ख़ुदा होने का पर दावा नहीं करते

हर मोड़ पर मुड़ने से पहले सोचना इतना
कुछ रास्ते जाते हैं बस लौटा नहीं करते

इतिहास की परछाइयों में डूब जाते हैं
गुज़रे हुए पन्नों से जो सीखा नहीं करते

आकाश तो उनका भी है जितना हमारा है
उड़ते परिंदों को कभी रोका नहीं करते

जो हो गया सो हो गया खुद का किया था सब
अपने किए पे बैठ कर रोया नहीं करते

नासवा की इस ग़ज़ल में समाहित संदेश हर शेर को किस तरह दमदार बना गया है, देखें-

नफरतों की डालियाँ काटा करो
घी सभी बातों पे ना डाला करो

गोपियों सा बन सको तो बोलना
कृष्ण मेरे प्यार को राधा करो

तुम भी इसकी गिर्द में आ जाओगे
यूँ अंधेरों को नहीं पाला करो

दुःख हमेशा दिल के अंदर सींचना
सुख जो हो मिल जुल के सब साझा करो

खिड़कियों के पार है ताज़ा हवा
धूल यादों की कभी झाड़ा करो

मैं भी अपने झूठ कह दूंगा सभी
तुम जो सच कहने का फिर वादा करो

10 टिप्‍पणियां:

  1. गज़ल संग्रह..बहुत अच्छी पोस्ट।
    शुक्रिया तमाम शायर और शायरी से रूबरू कराने के लिए।

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  2. आदरणीय वर्षा जी -- आदरणीय दिगम्बर जी नासवा ब्लॉग जगत के जाने माने गजलकार हैं | उनकी रचनाएँ अत्यंत मौलिक और अपनी मिसाल आप हैं | हिन्दी में उनकी उर्दू गजलें ब्लॉग जगत की शान तो हैं ही साथ में हिन्दी गजल रसिकों के लिए बेमिसाल उपहार हैं | उनकी शब्दावली और गजलों के अछूते भाव विस्मय से भर देने में सक्षम हैं | मैं शब्द नगरी से उन्हें पढ़ रहीं हूँ और उनके ब्लॉग पर नियमित पाठक हूँ | उनके निजी जीवन और रचना संसार के बारे में नयी बातें जानकर बहुत अच्छा लगा | आपको सादर सस्नेह आभार इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए |प्रणाम |

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  3. हार्दिक आभार आपका रेनू जी

    नासवा जी की ग़ज़लगोई का तो जवाब नहीं है। बेहतरीन सृजनधर्मी हैं वे।

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  4. आदरणीय वर्षा जी का बहुत बहुत आभार है जो मुझे इस क़ाबिल समझा की इस मंच पे मुझे बुलाया ...
    आप सब का आभार जो मारी रचनाएँ निरंतर पढ़ते हैं ...

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  5. नासवा जी को हम निरन्तर पढते और सराहते रहें हैं, वे बेशक एक उम्दा शायर हैं, उनकी शायरी व गजलें प्रवाहता लिये भाव प्रधान और बेहतरीन हैं। उनके व्यक्तित्व व सृजन से रूबरू करवाने हेतू आपको बहुत बहुत आभार वर्षा जी ।

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  6. नासवा जी, आपकी ग़ज़लें मुझे हमेशा से ही प्रभावित करती रही हैं, आपकी ग़जलों पर कुछ लिखा तो अब है मैंने....
    बहुत बहुत आभार अपनी टिप्पणी देने के लिए 🙏

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