रविवार, अक्तूबर 21, 2018

ग़ज़ल .... अक्सर ऐसा होता है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh
अक्सर ऐसा होता है 
मौसम आंसू बोता है

बिछुड़ा पत्ता डाली से 
चट्टानों पर सोता है 

उम्मीदों का इक झरना 
मन की देह भिगोता है 

कुछ पाने की चाहत में 
सारा जीवन खोता है 

रातों के सन्नाटे में 
यादों का शिशु रोता है 

मजबूरी का तीखापन 
रह-रह जिया करोता है 

समय पुस्तकों के भीतर 
सूखे फूल संजोता है 

दुख ही घनीभूत होकर 
मन की पीड़ा धोता है 

नियतिचक्र चुपके चुपके 
"वर्षा" दर्द  पिरोता है



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