शुक्रवार, जनवरी 25, 2019

ग़ज़ल ... उजाला लाइए - डॉ. वर्षा सिंह

Dr.Varsha Singh
ग़ज़ल

उजाला लाइए

बंद कमरों  में उजाला लाइए
भूख के बदले   निवाला लाइए

धूप की कोई ख़बर मिलती नहीं
ढ़़ूंढ़ कर ताजा़  रिसाला लाइए

ज़िन्दगी का स्वाद कड़वाहट भरा
हो सके तो कुछ निराला  लाइए

आपकी  बातें निराशा  से भरीं
आस्था  का भी हवाला  लाइए

बूंद ‘वर्षा ’ की  नदी बन जाएगी
हौसला  आषाढ़ वाला    लाइए

- डॉ. वर्षा सिंह   
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http://yuvapravartak.com/?p=8745


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "मुखरित मौन में" शनिवार 26 जनवरी 2019 को साझा की गई है......... https://mannkepaankhi.blogspot.com/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत सुन्दर आशावादी कविता वर्षा जी ! लेकिन साहिर ने आम आदमी के लिए कहा है -
    हम गमज़दां हैं,
    लाएं कहाँ से ख़ुशी के गीत.
    देंगे वही जो पाएंगे,
    इस ज़िन्दगी से हम.
    तंग आ चुके हैं, कशमक़शे, ज़िन्दगी से हम !

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  4. बंद कमरों में उजाला लाइए
    भूख के बदले निवाला लाइए
    ....बहुत खूब.....लाजवाब रचना.. आदरणीया

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