बुधवार, फ़रवरी 27, 2019

ग़ज़ल. कितने दिनों से.. डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

उसे देखा  नहीं  कितने दिनों से
सुकूं पाया नहीं  कितने  दिनों से

न पलकों से लगीं पलकें ज़रा भी
दिखा सपना नहीं कितने दिनों से

शज़र  तन्हा, परिन्दे  दूर  जाते
समा बदला नहीं कितने दिनों से

न पूछो दोस्तो अब हाल मेरा
पता अपना नहीं कितने दिनों से

नदी सूखी, हवा भी नम नहीं है
हुई "वर्षा" नहीं कितने दिनों से


ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 01 मार्च 2019 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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