बुधवार, मार्च 27, 2019

ग़ज़ल .... वो दिन भी क्या दिन थे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 मार्च 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

वो भी क्या दिन थे जब मौसम, भला-भला सा लगता था।
सपना इक मासूम सुहाना, मेरे दिल में पलता था।

इश्क़ बिछौना डाले रहता ख़्वाबों में, तन्हाई में,
मिलते ही नज़रों से नज़रें, कहीं दुबक कर छुपता था।

फूल कापियों में रहते थे, नॉवेल कॉलेजी बुक में,
अक्सर टेबिल की दराज़ में, रखा आईना रहता था।

वो भी क्या दिन थे जब रातें भी दिन जैसी लगती थीं,
सांझ से ले कर वक़्त सुबह तक,  खुली आंख से कटता था।

अब यादों में बीते दिन के इन्द्रधनुष रंग भरते हैं,
इन्द्रधनुष पर तब "वर्षा" का इन्द्रजाल सा चलता था।
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- डॉ. वर्षा सिंह

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http://yuvapravartak.com/?p=12533

गुरुवार, मार्च 21, 2019

🌺 होली की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺


एक भूली याद, फिर आई।
साथ में अपने तुम्हें  लाई ।

फाग ने लिख्खी नयी कविता
और लिखते रंग चौपाई ।

धूप निखरी, रूप निखरा है
दूर बजती आज शहनाई ।

छा रहा हर ओर जादू सा
चाहतों ने प्रेम-धुन गाई ।

राधिका ज्यों हो गई "वर्षा"
भा रही है श्याम परछाई ।
   - डॉ. वर्षा सिंह

शनिवार, मार्च 16, 2019

ग़ज़ल .... मेरे प्यार की कहानी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


मेरे प्यार की कहानी है जुदा कहूं मैं कैसे!
चुपचाप भी मगर अब सहती रहूं मैं कैसे!

वो न अजनबी है लेकिन मेरा भी वो नहीं है
क्या दिल में चल रहा है उसके पढ़ूं मैं कैसे!

न है शर्त और न कोई वादा किया है हमने,
दुनिया जो मारे ताने, आखिर सहूं मैं कैसे!

ग़ज़लें कही हैं ढेरों, न सुकूं मिला है दिल को,
मिसरों की डोरियों से सपने बुनूं मैं कैसे !

काली सफेद राहें, जैसे हों इक भुलैया,
अब ज़िन्दगी में "वर्षा" रंग फिर भरूं मैं कैसे !
               - डॉ. वर्षा सिंह

Ghazal - Dr. Varsha Singh

गुरुवार, मार्च 14, 2019

ग़ज़ल ..... आज उसकी गली से गुज़रते हुए - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


*ग़ज़ल*

आज उसकी गली से गुज़रते हुए, पांव मेरे ठिठक कर वहीं रुक गये।
जिस जगह उसने "लव यू" कहा था मुझे, अश्क आंखों से मेरी टपकने लगे।

वो अचानक न जाने जुदा क्यों हुआ, आज तक मैं समझ ये न पायी कभी,
आज उसकी गली से गुज़रते हुए, जख़्म दिल के अचानक हुए फिर हरे।

एक सपना जो देखा था मिल कर कभी, वो अधूरा, न पूरा हुआ आज तक,
आज तक फिर न कोई मिला उस तरह, जिसके मिलने से दिल में यूं हलचल मचे।

कोई वादा नहीं, कोई कसमें नहीं, एक अंजान बंधन में हम थे बंधे।
आज उसकी गली से गुज़रते हुए, साथ गुज़रे जो पल, याद फिर आ गये।


मुझसे कहता था अक्सर वो हंस कर यही, तुम न होतीं जो 'वर्षा' तो होता मैं क्या!
अब अकेला मुझे छोड़ कर वो गया, क्या ज़रूरी रही ना मैं उसके लिए ?
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- डॉ. वर्षा सिंह

बुधवार, मार्च 06, 2019

ग़ज़ल .... वो शख़्स मुझे छोड़ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


प्रिय मित्रों,
       मेरी ग़ज़ल को web magazine "उत्कर्ष मेल" के अंक दिनांक 06 मार्च 2019 में स्थान मिला है।
"उत्कर्ष मेल" के प्रति हार्दिक आभार 🙏

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http://utkarshmail.com/poem-and-story/gazal/



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ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, मार्च 05, 2019

ग़ज़ल ..... सुबह का मंज़र - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय मित्रों,
       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 04 मार्च 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

सुबह का ये मंज़र तो देखो ज़रा।
चमन सारा लगने लगा सुनहरा।

भैरवी की नयी गूंजती रागिनी
गीत गाता गगन है ख़ुशी से भरा।

रोशनी ने लिखे ख़त, उजाला हुआ
ढूंढता है अंधेरा नया आसरा ।

पंखुरी- पंखुरी ख़ुशबुएं भर गयीं
ख़ार समझे नहीं इश्क़ का माज़रा।

इक नयी आस "वर्षा" जगी आज फिर
आज पढ़ने लगा दिल नया ककहरा।
            - डॉ. वर्षा सिंह

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http://yuvapravartak.com/?p=11187

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