रविवार, जुलाई 07, 2019

पुस्तक समीक्षा... फनकारी सा कुछ तो है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

      आज 'राजस्थान पत्रिका' के रविवारीय (सभी संस्करण) में मेरे यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह द्वारा की गई पुस्तक समीक्षा प्रकाशित हुई है। पुस्तक है देश के ख्यातिलब्ध शायर डॉ. महेंद्र अग्रवाल का ग़ज़ल संग्रह 'फनकारी सा कुछ तो है'।...तो, आप भी पढ़िये यह समीक्षा 🌹
      हार्दिक आभार 'राजस्थान पत्रिका' 🙏
दिनांक 07.07.2019

ग़ज़ल संग्रह 'फनकारी सा कुछ तो है' की समीक्षा - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा
बड़ा है इन ग़ज़लों का कैनवास
               - डॉ. वर्षा सिंह
            ग़ज़ल लेखन ठीक वैसी ही कला है जैसे कोई संगतराश कठोर चट्टान को छेनी से तराश कर किसी कलात्मक प्रतिमा में बदल दे। प्रतिमा में नवरस उंडेले जा सकते हैं, ग़ज़ल में भी। ग़ज़ल एक साथ कई रसों का बोध करा सकती है।  हर कला की भांति ग़ज़ल में भी छन्दानुशासन होता है। जिसका निर्वाह करना ग़ज़ल की पहली शर्त होती है। यह रस, लय, छंद तथा गहन जीवनानुभव से मिल कर बनती है।

बेशक़ ग़ज़ल अरबी, फारसी से उर्दू में होती हुई हिन्दी तक पहुंची, किन्तु अब वह हिन्दी की एक अभिन्न विधा बन चुकी है। हिन्दी ग़ज़ल के क्षेत्र में कई नाम ऐसे हैं जिन्होंने ग़ज़ल को समृद्ध किया है। डॉ. महेन्द्र अग्रवाल भी ग़ज़ल की गरिमा के साथ कोई समझौता पसंद नहीं करते हैं।

आम जीवन की बेबाकी से जिक्र करना और इसकी विसंगतियों की सारी परतें खोल देना आान नहीं होता। ग़ज़ल की फनकारी में माहिर महेन्द्र अग्रवाल आम जन जीवन की परेशानियों को बखूबी समझते हैं और उन्हें अपनी ग़ज़ल में जगह भी देते हैं। उनकी ग़ज़ल का कैनवॉस काफी बड़ा है, जिसमें वे ज़िन्दगी के उन पलों को भी चित्रांकित कर देते हैं जो ग़ज़ल में यदाकदा ही जगह पाते हैं। उनको भली-भांति से पता है कि उन्हें अपनी भावनाओं को किन शब्दों में और किन बिम्बों के माध्यम से प्रकट करना है और यही बिम्ब विधान पाठक के मन को छूते हैं और आत्मा को झकझोरते हैं। इस ग़ज़ल संग्रह में संग्रहीत ग़ज़लों में चिंतन और विचारों को सरल और स्वाभाविक ढंग से प्रस्तुत किया गया है वह पाठकों के लिए सहज बोधगम्य है। इनमें विभिन्न भाव संकेत और बिम्ब हैं जिनसे इनके कहन का सौन्दर्य और लयात्मकता देर तक मन-मस्तिष्क में तैरती रहती है।
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http://epaper.patrika.com/c/41139437

डॉ. महेन्द्र अग्रवाल

फनकारी सा कुछ तो है - ग़ज़ल संग्रह

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
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    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी,
      हार्दिक आभार 🙏

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  2. संक्षिप्त और सुंदर समीक्षा!

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