शनिवार, अक्तूबर 26, 2019

ग़ज़ल ...✨ दीवाली ✨ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

🌹🏵✨दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं ✨🏵🌹
दीपावली दिनांक 27.10.2019 पर विशेष

दीवाली
                 - डॉ. वर्षा सिंह

नई रोशनी बिखर रही है आज नई कंदीलों से।
फिर उमंग की थाल सजी है मधुर बताशों- खीलों से।

किसे चांद की आज प्रतीक्षा मावस की यह रात भली
निकल रही है ज्योति नहाकर दीप-किरण की झीलों से।

दीवाली वो बचपन वाली याद आज भी आती है
पकवानों की खुशबू आती चूल्हे चढ़े पतीलों से।

स्वागत में रत हैं फिर यादें, चाहत के दरवाज़े पर
सुखद कामना के संदेशे आते चलकर मीलों से।

आंगन चौक पूर कर गोरी, द्वार सजाकर तोरण से
रंगबिरंगी - उजली झालर, बांध रही है कीलों से।

कहना मुश्किल असली तारे, नभ पर हैं या धरती पर
हुआ परेशां मौसम "वर्षा" तर्कों और दलीलों से।

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मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 अक्टूबर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=20897


Ghazal - Dr Varsha Singh

4 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (२८ -१०-२०१९ ) को " सृष्टि में अँधकार का अस्तित्त्व क्यों है?" ( चर्चा अंक - ३५०२) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  2. बहुत-बहुत आभार अनीता जी

    शुभ दीपावली 🙏🌟✨

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