गुरुवार, दिसंबर 26, 2019

ग़ज़ल ... मर्ज़ी क्या -डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
समझौता मेरे ही ज़िम्मे, नहीं तुम्हारा कुछ भी क्या
माफ़ी मैं ही मांगूं आख़िर मेरी ऐसी ग़लती क्या

हुईं क़िताबें कम तो भारी सूचनाओं का बोझ बढ़ा
सारा बचपन हवा हो गया, बच्चे भूले मस्ती क्या

यादों का संसार तिलस्मी, यादों के साये लम्बे
यादें तो यादें होती हैं मीठी क्या और खट्टी क्या

माना जीवन भर की खुशियां नहीं तुम्हारे वश में हैं
लेकिन मिलने पर भी आख़िर दोगे न इक झप्पी क्या

एक से बढ़ कर एक तमाशा किया सियासतदानों ने
रहे सलामत कुर्सी चाहे रिश्तों की हो कुर्की क्या

मनमानी कर तुमने अपने नियम-क़ायदे गढ़ डाले
एक दफ़ा तो पूछा होता "वर्षा" तेरी मर्ज़ी क्या
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मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 दिसम्बर 2019 में स्थान मिला है। युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏 मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ... http://yuvapravartak.com/?p=23459

मंगलवार, दिसंबर 24, 2019

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

          शिवना प्रकाशन की फेसबुक वाल पर यह सूचना है- "नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेले में शिवना प्रकाशन के स्टॉल पर वरिष्ठ कवयित्री डॉ. वर्षा सिंह का नया ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" उपलब्ध रहेगा। "
         मित्रों, दरअसल.. मेरा पांचवां ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" वर्ष 2012 में प्रकाशित हुआ था... तब के बाद मित्र अक्सर पूछते- आपका अगला संग्रह कब आ रहा है ? तमाम तरह की व्यस्तताओं के चलते मुस्कुरा कर टाल जाती थी मैं... लेकिन शिवना प्रकाशन को बहुत धन्यवाद दिल से... जिसकी बदौलत अब मेरे पास जवाब है - लीजिए यह रहा मेरा ताज़ा छठवां ग़ज़ल संग्रह ....

"ग़ज़ल जब बात करती है"- डॉ. वर्षा सिंह

       जी हां, मेरी इस ग़ज़लयात्रा में मुझे कभी धूप मिली तो कभी छांव। इस दफ़ा छांव की शीतलता का सुखद अहसास कराया है शिवना प्रकाशन ने। इस प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान की प्रकाशन की दुनिया में अपनी अलग ही पहचान है।

शिवना प्रकाशन की नई पुस्तकें 

           साहित्यमनीषी, कथाकार, उपन्यासकार, गज़लकार, व्यंग्यकार, सम्पादक ... या एक शब्द में यूं कहूं कि बहुप्रतिभाशाली भाई पंकज सुबीर और उनके बेहद जागरूक सहयोगी ग़ज़लकार अधिवक्ता शहरयार अमजद ख़ान सहित शिवना प्रकाशन टीम की मैं तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूं जिन्होंने मेरी ग़ज़लों को संग्रह का रूप दिया।
             .... और आप सभी ब्लॉगर मित्रों के प्रति भी आभार जिन्होंने समय-समय पर अपनी टिप्पणियों के माध्यम से मुझे प्रोत्साहित किया।

सोमवार, दिसंबर 23, 2019

नागरिकता संशोधन कानून के परिप्रेक्ष्य में : ग़ज़ल ... झंझट-झगड़ा ठीक नहीं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

*ग़ज़ल*

*ठीक नहीं*
       - डॉ. वर्षा सिंह

हर मुद्दे पर झंझट - झगड़ा  ठीक  नहीं
बिना बात का लफड़ा-दफड़ा ठीक नहीं

मज़बूरी में  फटा  पहनना  चलता  है
फैशन में लटकाना चिथड़ा ठीक नहीं

फूल खिले हों, तरह-तरह की ख़ुशबू हो
अगर बाग़ है तो फिर उजड़ा ठीक नहीं

खाली-पीली आपस में तक़रार  ग़लत
हरदम जात-धरम का पचड़ा ठीक नहीं

"वर्षा" अपना है जग सारा, सब अपने
यूं  ही  रहना उखड़ा-उखड़ा ठीक नहीं

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प्रिय मित्रों,
        मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 20 दिसम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

मंगलवार, दिसंबर 17, 2019

अगर इक चाय मिल जाए


ज़रा सोचिए, पौष माह की इस कड़कड़ाती हाड़ कंपाती सर्दी में एक गर्म चाय की प्याली उन भूखे जनों के लिए किसी अमृत पात्र से कम नहीं होती.... अचानक जे़हन में उभर आए इस शेर के रूप में मेरी अभिव्यक्ति प्रस्तुत है....
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वो जिनके पेट खाली हैं
मयस्सर है नहीं कुछ भी,
अमृत सी उन्हें लगती
अगर इक चाय मिल जाए
- डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, दिसंबर 10, 2019

सलामत रहे इश्क़ ❤ ... डॉ. वर्षा सिंह

रही जो कहानी अधूरी तो क्या !
नहीं और कुछ भी ज़रूरी तो क्या ?
सलामत रहे इश्क़ वाला ज़ुनूं
गुज़र गर  गई  उम्र पूरी तो क्या !
       - डॉ. वर्षा सिंह