शनिवार, दिसंबर 26, 2020

हर बूंद पढ़ रही है | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


हर बूंद पढ़ रही है ....

- डॉ. वर्षा सिंह


मेरे लिए बना वो रेशम की ओढ़नी 

उसके लिए न पूछो मैं क्या नहीं बनी 


चाहत के इक भंवर में उलझी हुई नदी 

मुट्ठी में क़ैद जैसे हीरे की इक कनी 


सपनों के पर जलाकर ख़ामोश हो गई 

रातों की आंच लेकर सुलगी जो चांदनी 


ताज़्जुब तो ये है दुनिया इक फूल के लिए 

कोहरे-सी सर्द, ज़हरी, काली घनी-घनी 


जुड़ने के, टूटने के आदिम-से सिलसिले 

चिर कर हुई है अक्सर दो फांक रोशनी 


मीठी छुवन की "वर्षा" भीगी इबारतें

हर बूंद पढ़ रही है सदियों से सनसनी


--------------

(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

23 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी 🙏

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 28 दिसंबर 2020 को 'होंगे नूतन साल में, फिर अच्छे सम्बन्ध' (चर्चा अंक 3929) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

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    उत्तर
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय रवीन्द्र यादव जी 🙏

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  3. वाह!लाजवाब आदरणीय दी... पूछो क्या नहीं बनी।
    सादर

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  4. चाहत के इक भंवर में उलझी हुई नदी

    मुट्ठी में क़ैद जैसे हीरे की इक कनी


    सपनों के पर जलाकर ख़ामोश हो गई

    रातों की आंच लेकर सुलगी जो चांदनी

    शानदार ग़ज़ल...
    बेहतरीन !!! - डॉ. शरद सिंह

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    उत्तर
    1. बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. शरद सिंह ❤️💐❤️

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  5. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद दीपक कुमार भानरे जी !

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  6. जुड़ने के, टूटने के आदिम-से सिलसिले

    चिर कर हुई है अक्सर दो फांक रोशनी - - अंदाज़े बयां ऐसा कि हर शब्द, निशब्द कर जाये - - बेहद सुन्दर सृजन।

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  7. सपनों के पर जलाकर ख़ामोश हो गई

    रातों की आंच लेकर सुलगी जो चांदनी
    बहुत बहुत सुन्दर

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  8. दिल को छू गई आपकी रचना
    बहुत बधाई

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  9. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ओंकार जी !

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