सोमवार, अगस्त 02, 2021

डाॅ. वर्षा सिंह के ग़ज़ल संग्रह ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ की समीक्षा

 प्रस्तुत है मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से प्रकाशित प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका ‘‘प्रेरणा’’ के अप्रैल-जून 2021 में प्रकाशित डाॅ. वर्षा सिंह के ग़ज़ल संग्रह ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ की साहित्यकार डाॅ श्याम मनोहर सीरोठिया द्वारा की गई समीक्षा।

Ghazal Jab baat karti hai - Review - Prerna Ptrika April- Jun 2021


Ghazal Jab baat karti hai - Review - Prerna Ptrika April- Jun 2021

Ghazal Jab baat karti hai - Review - Prerna Ptrika April- Jun 2021



Ghazal Jab baat karti hai - Review - Prerna Ptrika April- Jun 2021




शुक्रवार, अप्रैल 16, 2021

है ज़रूरी सावधानी | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

ग़ज़ल
है ज़रूरी सावधानी

     - डॉ. वर्षा सिंह

बेबसी में ज़िन्दगानी
बोतलों में बंद पानी

नीर के स्त्रोतों से कब तक
और होगी छेड़खानी

कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रहा जो आज धानी

गर नहीं दुनिया रही तो
कौन राजा, कौन रानी !

राजनीतिक द्यूत क्रीड़ा
दांव पर खेती -किसानी

वन कटे तो नित बदलती
मौसमों की राजधानी

लौट आया है कोरोना
है  ज़रूरी सावधानी

रात भर सोती नहीं मां
हो रही बेटी सयानी

क्या किया, सोचो कभी तो
गुम कुंआ, नदिया सुखानी

काटना होगा जो बोया
रीत यह तो है पुरानी

देश के जो काम आए
सार्थक है वो जवानी

क्या कहें, पूरब से पश्चिम
छा गई है बेईमानी

छांछ-मक्खन बांट देगी
वक़्त की चलती मथानी

बुझ रही संवेदना की
ज्योति होगी अब जगानी

रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी

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मंगलवार, अप्रैल 06, 2021

ग़ज़ल जब बात करती है | ग़ज़ल संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह | बुक कैफे | आजतक टी.वी.

 प्रिय ब्लॉग पाठकों, प्रस्तुत है मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" की समीक्षा आजतक चैनल पर....

Dr. Varsha Singh

साभार आजतक टीवी 🙏

देश के चर्चित टीवी चैनल 'आजतक' के साहित्यिक कार्यक्रम BookCafe 'साहित्य तक' में 'आजतक' के साहित्यमर्मज्ञ, प्रखर समीक्षक जय प्रकाश पाण्डेय जी ने बहुचर्चित पांच क़िताबों में मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" पर भी महत्वपूर्ण चर्चा की है। इस पूरी प्रस्तुति को आप यू ट्यूब की इस लिंक पर देख सकते हैं - 

https://youtu.be/3jeMdSyvlj8



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सोमवार, अप्रैल 05, 2021

डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर | ग़ज़ल संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह | पुस्तक समीक्षा | समीक्षक - डाॅ. चंचला दवे

Ghazal Jab Baat Karti Hai - A Ghazal Book By Dr. Varsha Singh

मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" की समीक्षा आज "आचरण", दैनिक समाचार पत्र दि. 05.04.2021 में प्रकाशित हुई है। समीक्षक डॉ. चंचला दवे एवं आचरण को हार्दिक आभार 🙏


पुस्तक समीक्षा

     डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर.                         

समीक्षक - डाॅ. चंचला दवे

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पुस्तक : ग़ज़ल जब बात करती है

कवयित्री: डाॅ. वर्षा सिंह

प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, सीहोर (म.प्र.)

मूल्य   : रुपये 200/-

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ग़ज़ल पर बात करते हुए यदि इसके इतिहास पर दृष्टि डालें तो इसकी ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि यह है कि कसीदह, कसीदा मूल रुप से अरबी साहित्य की महत्वपूर्ण काव्य विधा है। जिसे युद्ध के मैदान में अपने कुल के बुजुर्गों के यशगान के तौर पर  पढ़़ा जाता है। कसीदे का यही रूप अरबी से गुजरता, फारसी में ईरान पहुंचा और इसी कसीदे की कोख से हमारी ग़ज़ल ने जन्म लिया, अरबी में ग़ज़ल नाम की कोई विधा नहीं है। वास्तव में ईरान में ही ग़ज़ल परवान चढ़ी और अपनी विशेषताओं के साथ इश्किया शायरी की ऐसी विधा के रुप में विकसित हुई कि सबकी महबूब बन कर हर दिल अजीज हो गई।

शिवना प्रकाशन से प्रकाशित ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ पुस्तक बेहतरीन 105 ग़ज़लों का ऐसा गुलिस्ता है, जिसकी महक ग़ज़लों को पढ़ने के बाद दिल और आत्मा तक अपनी कहानी कहती नजर आती है। डॉ. वर्षा सिंह ग़ज़ल एवं समीक्षा के क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं जिन्होंने अनेक साहित्यिक मंचो को प्रतिष्ठा प्रदान की है, अनेक सम्मानों से विभूषित आप ब्लॉग लेखिका, स्तंभ लेखिका एवं अच्छी समीक्षक है। आपकी अनेक पुस्तके प्रकाशित हैं। यह आपका छठवां ग़ज़ल संग्रह है।

हर रचनाकार अपना अलग मिजाज रखता है और वह अपने देश, काल अपनी सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक साथ ही आर्थिक परिस्थितियों से पूर्णतः प्रभावित होता है। इन सबके दबावों के तहत ही वह अपनी रचना करता है। ‘‘एकला चलो रे’’ पर विश्वास करती हुई वे आशान्वित है,उनके पीछे, एक दिन अनुकरण करता हुआ पूरा समूह होगा। डॉ. वर्षा सिंह जी की पहली ग़ज़ल देखिए -

  चली हूं मै अकेली, साथ कल इक कारवां होगा

  न जो मिट पायेगा ऐसा कोई बाकि निशां होगा


डॉ. वर्षा स्वतंत्रता की पक्षधर है, परिंदो की उडानों पर पाबंदियों के सख्त खिलाफ है-

न हो पाबंदियां कोई  परिंदो की उड़ानो पर

नई होगी ज़मी बेशक़, नया इक आसमां होगा


संकलन की अनेक ग़ज़लें प्रेम, इश्क, रूमानियत के अहसासों से सराबोर हैं। डॉ. वर्षा सिंह जी की ग़ज़लें प्रेम में पगी हैं। प्रिय की प्रतीक्षा करती हुई वे कह उठती हैं-

उसी का नाम ले लेकर मेरे दिन रात कटते है

उसी के नूर से दुनियां सितारों सी चमकती है


चमन गुलज़ार उससे है, बहारों का वो साया है

कहीं से वो निकलता है,  गली मेरी महकती है


 ग़ज़ल के मूल में वार्तालाप है, संवाद है संप्रेषण है, ऐसी ग़ज़लें स्वाभाविक रीति से जन्म लेती हैं। ग़ज़लों में श्रृंगार  के संयोग और वियोग दोनों ही समाहित होते है, इनकी अनुपस्थिति भी ग़ज़लों को हल्का कर सकती है। परंतु डॉ. वर्षा सिंह जी की ग़ज़लों में मिलन और विरह के साथ धूप, सूरज और चांद अपनी हाजिरी देते चलते हैं। उदाहरण देखिए-

न पूछो दिन तुम्हारे बिन यहां कैसे गुजारे है

बिखरते इश्क के अल्फाज मुश्किल से संवारे है


लिखा था चांद का जिसमें पता, वो डायरी गुम है

यहो तो  आसमां में, बस,  सितारे  ही  सितारे हैं


डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में रूमानियत का एक अलग ही अंदाज़ देखने को मिलता है-

वो लम्हा आज भी है याद, जिसमें तुम मिले मुझको

सुलगती  दोपहर  में चांद जैसे  तुम  दिखे मुझको


इरादा नेक  गर  हो तो, खुदा भी मिल ही जाता है

बढ़ा कर हाथ  खुशियों ने  लगाया है  गले मुझको


अनेक ग़ज़लों में कवयित्री का मौलिक चिंतन, प्रबल भावों की उद्भावना, जन मानस के अंतर्मन पर छा जाने वाली जीवंत संवेदनाओं से ओत प्रोत, सहज, सरल शब्दावली के साथ ही मधुर स्वर से लयबद्ध गायकी सभागार में श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देती है। डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में कहीं पर भी कृत्रिमता नजर नहीं आती। उनकी ग़ज़लें बातें करती हैं, संवाद करती हैं। वे लिखती हैं-

ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं

गमों की स्याह रातों में ख़ुशी के दीप जलते हैं


सुलझते  हैं  कई मसले, मधुर  संवाद करने से

भुला कर दुश्मनी मिलने के फिर, पैग़ाम मिलते हैं


इसी ग़ज़ल के एक शेर में वे कहती हैं-‘‘ जहां हो राम का मंदिर, वहीं अल्लाह का घर हो’’-इस महत्वपूर्ण ग़ज़ल के माध्यम से वर्षा जी समाज में एक सकारात्मकता का उद्घोष करती हैं। शांति और सद्भावना को स्थापित करती हुई वे कह उठती है-

समझना चाहिए यह सच, हमारे हर पड़ोसी को

जो टालो शांति से, टकराव भी चुपचाप टलते हैं

ग़ज़ल संग्रह " ग़ज़ल जब बात करती है" (डॉ. वर्षा सिंह) की समीक्षा

वर्षां जी की अनेक ग़ज़लें जीवन की बीहड़ता से उपजती त्रासदी को बयां करती है। वे शहर में रहते हुए गांव को भुला नहीं पाती हैं।

रास न  आया  शहर तुम्हारा, रास न आई  सड़क हमें

गांव भला था, गली भली थी तनिक न भाई सड़क हमें


मन करता है भोर का भूला, सांझ  गांव को लौट चले

सुआ बना  कर  क़ैद किए है, ये  हरजाई  सड़क हमें


 वर्तमान परिवेश में व्याप्त छल, झूठ, कपट के वातावरण में ईमानदारी से जीने की कठिनाई को व्यक्त करती हुई राष्ट्रपिता गांधी जी का स्मरण करती हुई कहती हैं कि -

सत्य अहिंसा को अपनाना, सबके बस की बात नहीं

राष्ट्र पिता गांधी हो जाना, सबके बस की बात नहीं


वर्षा सिंह जी एक संवेदनशील रचनाकार है, जगत में व्याप्त पशु-पक्षी और यहां तक की नन्ही सी चिड़िया के प्रति भी करुणा रखती है-

दाना-दुनका शेष नहीं है, खायेगी कैसे चिड़िया

आम, नीम भी बचे नहीं हैं, आयेगी कैसे चिड़िया


जगह नहीं है, जहां बन सके, निर्भय हो कर नीड़ नया

चोंच  दबा  कर  नन्हा  तिनका, लायेगी कैसे चिड़िया


वर्षा जी पुस्तकों से प्रेम करने वाली, अध्ययन में गहरी रूचि रखने वाली, कवयित्री हैं। वे पुस्तकों की महत्ता के बारे में कहती हैं-  

नया रंग जीवन में भरती किताबें

कड़ी धूप में  छांह बनती किताबें


वर्षा जी की ग़ज़लों में अपने रूप, प्रकृति एवं तरतीब की विशेषताओं के कारण उनमें लोच और लचक विद्यमान है। वे हर ग़ज़ल अपने खयाल और अहसास को पूरे सौंदर्य के साथ बयान करने की गुंजाइश रखती हैं। वर्षा सिंह जी की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर है। उनकी ग़ज़लों में मधुमास है, औरत है, परिंदे हैं, प्रेम हैं, पीड़ा है, मिलन के साथ वियोग है, देश है, धरती है, बारिश है, गांव है, शहर है, प्रकृति है, अतीत है, पक्षी और पानी भी है।

संवेदना की गहराई, अनुभूति की तीव्रता ग़ज़लों को विशेष बनाती है। वर्षा जी बनावट से दूर स्वाभाविक अभिव्यक्ति में विश्वास रखती है। महत्व की बात आज पानी कम होता जा रहा है, वे पानी को बचाने का आह्वान करती है-

जीवन जो  बचाना है,  पानी को बचाये हम

जलस्रोत सहेजें  फिर घाटों को सजाये हम


संकलन की भाषा सहज सरल है। कहीं कहीं अंग्रेजी के तो, कहीं पर लोक जीवन के शब्दो के आने से, सौंदर्य की अभिवृद्धि के साथ नव प्रयोग है- प्यूरी फायर, नावेल, पोखर, पनघट आदि। उदाहरण देखें-

प्यूरीफायर  देख  तैरते  आंखों  में

पोखर, पनघट, वाले गागर के सपने


अथवा,

फूल कापियों में रहते थे, नाॅवेल  काॅलेजी बुक में

अक्सर टेबिल की दराज़ में, रखा आईना रहता था


‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ ग़ज़ल संग्रह सकल युग की चेतना का प्रतिबिंब है। यह समय की उस तपिश का बयान करती है,जो दिन प्रतिदिन भयावह होता जा रहा है। जब सारी दुनिया कोरोना के ताप से तप रही है, मंहगाई से जूझ रही है, ऐसे वक्त मे इस पुस्तक की ग़ज़लों को पढ़ना, महसूसना वर्षा ऋतु में सुंदर फसलों के लहलहाने जैसा है। अंत में शीर्षक की सार्थकता में मैं अपनी सहमति देती हूं कि -‘‘ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं’’। संरचना की द्दष्टि से वर्षा जी की ग़ज़लें समसामायिक है तथा उनकी ग़ज़लों के विषय का कैनवास  हमारे इर्द-गिर्द है। वर्षा जी पर मां सरस्वती की कृपा बरसती रहे। वे यशस्वी, दीर्घायु हो इन्ही मंगल कामनाओं के साथ।

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आलेख का Text साभार : डॉ. चंचला दवे

सोमवार, मार्च 29, 2021

ग़ज़ल | होली की हार्दिक शुभकामनाएं | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल : होली
                                -डॉ. वर्षा सिंह

लगा है आज रंग तो, लगा है फिर गुलाल भी ।
हुई  है लाल  चूनरी,  हुए  हैं लाल गाल भी ।

गली में, खेत में, वनों में,  उड़ रहा अंबीर  है,
हुई है लाल  आज तो ये टेसुओं की डाल भी ।

हुआ है आज कृष्ण मन, तो राधिका ये देह है
गुज़र रहा हरेक पल, खुशी   से है निहाल भी ।

मिटा के सारी दुश्मनी, लगाएं आज हम गले
भुला के हर उलाहने, मिटा दें हर सवाल भी ।

ज़रा सी हों शरारतें , ज़रा सी शोख़ हरकतें
रहे न कोई गमज़दा,  मचे  ज़रा  धमाल भी ।

हुआ है चैतिया हवा का, इस क़दर असर यहां
मचल उठी है चाहतें,  बदल गई है चाल भी ।

न आंख नम रहे कोई, न ‘‘वर्षा ’’ आंसुओं की हो
खुशी की राग-रागिनी, खुशी  के सुर भी, ताल भी ।

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गुरुवार, मार्च 25, 2021

फाग गाता है "ईसुरी" जंगल | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

     फाग गाता है "ईसुरी" जंगल
               - डॉ. वर्षा सिंह

है दरख़्तों  की शायरी जंगल
धूप - छाया की डायरी जंगल

बस्तियों से निकल के तो देखो
ज़िन्दगी की है ताज़गी जंगल

गूंजती  हैं  ये वादियां जिससे
पर्वतों  की  है  बांसुरी  जंगल

कर रहा  है अनेक  कल्पों से
सृष्टिकर्ता की आरती जंगल

जीव हो या कि पौध हो कोई
हंस के करता है दोस्ती जंगल

याद  करता  है  गर्व से अक्सर
''राम-सीता'' की जीवनी जंगल 

जब  बहारें "रजऊ"-सी सजती हैं
फाग  गाता है  *"ईसुरी" जंगल

दिल से  पूछो  ज़रा  परिंदों  के
खुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल

नाम  ‘वर्षा’  बदल भी जाए तो
यूं  न  बदलेगा ये  कभी जंगल

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* [ भारतेन्दु युग के लोककवि ईसुरी (1831-1909 ई.) आज भी बुंदेलखंड के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि हैं। ईसुरी की रचनाओं में ग्राम्य संस्कृति एवं सौंदर्य का वास्तविक चित्रण मिलता है। ग्राम्य संस्कृति का पूरा इतिहास केवल ईसुरी की फागों में मिलता है। उनकी फागों में प्रेम, श्रृंगार, करुणा, सहानुभूति, हृदय की कसक एवं मार्मिक अनुभूतियों का सजीव चित्रण है। उनकी ख्‍याति फाग के रूप में लिखी गई उन रचनाओं के लिए विशेष रूप से है, जो काल्‍पनिक प्रेमिका रजऊ को संबोधित करके लिखी गई हैं। ]

मंगलवार, मार्च 23, 2021

शहीदों को नमन | ग़ज़ल | शहीद दिवस | 23 मार्च पर विशेष | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

प्रिय ब्लॉग पाठकों,
      आज शहीद दिवस पर मेरी एक ग़ज़ल .... 🙏
शहीदों को नमन

चल दिये थे वो अकेले, काफ़िला देखा नहीं
देश को देखा था, अपना फ़ायदा देखा नहीं

बांध कर सिर पर कफ़न निकले थे जो बेख़ौफ़ हो
मंज़िलों पर थी नज़र फिर रास्ता देखा नहीं

देश को आज़ाद करने का ज़ुनूं दिल में लिए
हंस के बंदी बन गये थे, कठघरा देखा नहीं

उन शहीदों को नमन है, जो वतन पर मिट गये
ताज कांटों का पहन कर आईना देखा नहीं

राजगुरु, सुखदेव, "वर्षा", भगत सिंह, आज़ाद ने
आंधियों से डर के  कोई आसरा देखा नहीं

 🙏 -  डॉ. वर्षा सिंह

शहीद दिवस
Martyr's Day
23 March

#ग़ज़लवर्षा

गुरुवार, मार्च 18, 2021

औरत | महिलाओं को समर्पित | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

ग़ज़ल


औरत

- डॉ. वर्षा सिंह

ख़ूबसूरत सा ख़्वाब है औरत

ज़ुल्मतों का जवाब है औरत


इसको पढ़ना ज़रा आहिस्ता से 

प्यार की इक किताब है औरत


इस जहां के हज़ार कांटों में

इक महकता गुलाब है औरत


इसमें दुर्गा, इसी में मीरा भी

आधी दुनिया की आब है औरत


जोड़, बाकी, बटा, गुणा "वर्षा"

ज़िन्दगी का हिसाब है औरत



रविवार, मार्च 07, 2021

औरतें | 08 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल
औरतें
-डॉ. वर्षा सिंह

सागर की लहर, झील का पानी हैं औरतें।

बहती  हुई  नदी  की   रवानी हैं औरतें।

दुनिया की हर मिसाल में शामिल हैं आज वो
‘लैला’ की, ‘हीर’ की जो कहानी  हैं औरतें।

उनका  लिखित स्वरूप  महाकाव्य की तरह
वेदों की ऋचाओं-सी  ज़ुबानी  हैं  औरतें।

मिलती हैं  जब कभी  वो  सहेली के रूप में
यादों  की  वादियों-सी  सुहानी  हैं औरतें।

‘मीरा’  बनी कभी,  तो ‘कमाली’  बनी कभी
‘वर्षा’  कहा  सभी  ने -‘सयानी हैं औरतें’।
      ---------------------

शुक्रवार, मार्च 05, 2021

चलते-चलते | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - दिल बंजारा

Dr. Varsha Singh
ग़ज़ल

चलते-चलते


         - डॉ. वर्षा सिंह


रंज-ओ-ग़म से नहीं बचा कोई

दर्द-ए-दिल की नहीं दवा कोई


ज़िन्दगी की उदास राहों में

है नहीं अपना आश्ना कोई


बेवजह रूठ कर जो माने ना

ऐसे होता नहीं ख़फ़ा कोई


आपसे दिल्लगी का मक़सद था

आप देते हमें सज़ा कोई


जैसे माज़ी पुकारता हो मेरा

ऐसी मुझको न दे सदा कोई


अब के मौसम में क्या हुआ, या रब!

हो गया फूल फिर जुदा कोई


यूं ही आंखों में आ गए आंसू

अब न उमड़ेगी फिर घटा कोई


उनकी यादों को नींद आ जाए

काश! ऐसी करे दुआ कोई


यूं ही चुपके से मेरे सिरहाने

आ के रख जाए फिर वफ़ा कोई


बुझ रहे हैं च़िराग, बुझ जाएं

अब न दीजे इन्हें हवा कोई


आप तक जा के ख़त्म हो जाए

ऐसा मिल जाए रास्ता कोई


मंज़िल-ए-राहे-इश्क़ में "वर्षा"

चलते-चलते नहीं थका कोई


         --------------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" से)

गुरुवार, मार्च 04, 2021

नाम तुम्हारा | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


नाम तुम्हारा 


   - डॉ. वर्षा सिंह


सुनते हैं सदी पहले कुछ और नज़ारा था

इस रेत के दरिया में पानी था, शिकारा था


रिश्तों से, रिवाज़ों से, बेख़ौफ़ हथेली पर

जो नाम लिखा मैंने, वो नाम तुम्हारा था


मुद्दत से मुझे कोई, बेफ़िक्र न मिल पाया 

हर शख़्स की आंखों में चिंता का पिटारा था 


दंगों ने, फ़सादों ने बस्ती ही जला डाली

जिस ओर नज़र डाली, उस ओर शरारा था

 

हैरान न अब होना, आंधी जो चली आई 

ख़ामोश उदासी ने हलचल को पुकारा था


ज़िद पार उतरने की, हो पाई नहीं पूरी

डूबी थी जहां किश्ती, कुछ दूर किनारा था


थक-हार के लोगों ने, चर्चा ही बदल डाली 

समझा न कोई कुछ भी, क्या ख़ूब इशारा था


जिस रात की आंखों में, मैं झांक नहीं पाई 

उस रात की आंखों का, हर ख़्वाब सितारा था 


मर-मर के बिताई है "वर्षा" ने उमर सारी 

कहने को हर एक लम्हा, जी-जी के गुज़ारा था 


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)