शुक्रवार, फ़रवरी 12, 2021

इस शहर में | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


इस शहर में


- डॉ. वर्षा सिंह


इक ख़बर अख़बार में छपने-छपाने चल पड़ी 

बात उसकी, कौन जाने किस बहाने चल पड़ी 


इस शहर में नींद का फेरा कभी होता नहीं 

रात सपनों के लिए मातम मनाने चल पड़ी 


एक लड़की सिसकियों का बोझ कांधे पर लिए 

उम्र का पूरा सफ़र तन्हा बिताने चल पड़ी


लोग चर्चा कर रहे थे देश के हालात पर 

और मां बच्चे के ख़ातिर दूध लाने चल पड़ी 


ख़ून में डूबी हुई वादी अकेली रह गई 

ज़िन्दगी फिर मौत के लम्हे उठाने चल पड़ी 


धूप, "वर्षा"-बादलों की भीड़ में खो कर कहीं 

नाम गुमनामों की सूची में बढ़ाने चल पड़ी


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)


10 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावपूर्ण और प्रभावी गजल
    बधाई

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    1. बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति खरे जी 🙏

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. हार्दिक आभार प्रिय यशोदा जी 🙏

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  4. यह सूचना पा कर मैं अनुगृहीत हूं आदरणीय शास्त्री जी ... हार्दिक आभार 🙏

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  5. सुन्दर व प्राणवंत सृजन - - साधुवाद सह।

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    1. हृदयतल की गहराइयों से हार्दिक धन्यवाद आपको 🙏

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