डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़ल -
सागर की लहर, झील का पानी हैं औरतें।
बहती हुई नदी की रवानी हैं औरतें।
दुनिया की हर मिसाल में शामिल हैं आज वे
‘लैला’ की, ‘हीर’ की जो कहानी हैं औरतें।
उनका लिखित स्वरूप महाकाव्य की तरह
वेदों की ऋचाओं-सी ज़ुबानी हैं औरतें।
मिलती हैं जब कभी वे सहेली के रूप में
यादों की वादियों-सी सुहानी हैं औरतें।
‘मीरा’ बनी कभी, तो ‘कमाली’ बनी कभी
‘वर्षा’ कहा सभी ने -‘दीवानी हैं औरतें’।
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सागर की लहर, झील का पानी हैं औरतें।
बहती हुई नदी की रवानी हैं औरतें।
दुनिया की हर मिसाल में शामिल हैं आज वे
‘लैला’ की, ‘हीर’ की जो कहानी हैं औरतें।
उनका लिखित स्वरूप महाकाव्य की तरह
वेदों की ऋचाओं-सी ज़ुबानी हैं औरतें।
मिलती हैं जब कभी वे सहेली के रूप में
यादों की वादियों-सी सुहानी हैं औरतें।
‘मीरा’ बनी कभी, तो ‘कमाली’ बनी कभी
‘वर्षा’ कहा सभी ने -‘दीवानी हैं औरतें’।
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