Dr. Varsha Singh |
शिव कहां !
- डॉ. वर्षा सिंह
कौन पढ़ता है किताबें आजकल
वक़्त कहता 'फोर-जी' के साथ चल
कांपती हैं पत्तियां बीमार-सी
अब हवा भी वायरस से है विकल
इन दिनों लड़की से कहते हैं सभी
हो गई है शाम, घर से मत निकल
चाहता कोई ज़रा झुकना नहीं
भूल थी, संवाद से निकलेगा हल
देखिए, फागुन में बारिश हो रही
कर लिया मौसम ने शायद दल-बदल
आंसुओं की नींव पर बनता नहीं
ख़ुशनुमा सा मुस्कुराहट का महल
जो स्वयं पर ही नहीं करते यकीं
वो कभी भी हो नहीं पाते सफल
सोचिए, कैसे मिले सदभावना
द्वेष बो कर, द्वेष की मिलती फ़सल
दौर कैसा आ गया है, देखिए !
दोस्तों में अब नहीं होती चुहल
शिव कहां ! अब पूछती व्याकुल धरा
जो स्वयं ही कण्ठ में धारे गरल
बूंद "वर्षा" की, सभी की प्यास को
तृप्ति देती है सदा निर्मल तरल
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
हर चिंतन शानदार, हर शेर लाजवाब👌👌👌👌।
जवाब देंहटाएंदमदार ग़ज़ल जो मन को छू गई----+
शिव कहां ! अब पूछती व्याकुल धरा
जो स्वयं ही कण्ठ में धारे गरल!
क्या खूब कहा 👌👌👌👌
हार्दिक धन्यवाद प्रिय रेणु जी 🙏
हटाएंचाहता कोई ज़रा झुकना नहीं
जवाब देंहटाएंभूल थी, संवाद से निकलेगा हल ।
ये ग़ज़ल ज़रूर पहले की ही होगी । लेकिन इस शेर में आपने आज के समय का सच लिख दिया था । आपको भविष्य का पता था क्या ?
हर शेर सवा सेर है । बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ।
आपकी यह सराहना मेरा सम्बल है आदरणीया 🙏
हटाएंहार्दिक धन्यवाद 🙏
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 26 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपके प्रति आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी 🙏
हटाएंबहुत सुन्दर और सारगर्भित ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏
हटाएंसुंदर 'सत्य !यथार्थ !!
जवाब देंहटाएंवर्षा जी सच्चाई का बयान करते उम्दा शेर , बहुत सच्ची ग़ज़ल।
बधाई।
बहुत शुक्रिया तहेदिल से आदरणीया कुसुम कोठारी जी 🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२७-०२-२०२१) को 'नर हो न निराश करो मन को' (चर्चा अंक- ३९९०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
अनीता सैनी
हार्दिक आभार प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
हटाएंसमय की नब्ज को टटोलती
जवाब देंहटाएंशानदार गजल
बधाई
बहुत शुक्रिया आदरणीय ज्योति खरे जी 🙏
हटाएंआंसुओं की नींव पर बनता नहीं
जवाब देंहटाएंख़ुशनुमा सा मुस्कुराहट का महल
जो स्वयं पर ही नहीं करते यकीं
वो कभी भी हो नहीं पाते सफल
बहुत ही बढ़िया लिखा है
आपकी सराहना के ये बोल मेरे लिए अनमोल हैं आदरणीय राजपुरोहित जी, हार्दिक धन्यवाद 🙏
हटाएंसुन्दर चित्रण ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया भानरे जी 🙏
हटाएंबहुत अच्छी लगी आपकी यह ग़ज़ल मुझे वर्षा जी ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
हटाएंआप जैसे सुधी पाठकों /सृजनधर्मी रचनाकारों की सराहना मिलना मेरे सृजन को सार्थकता प्रदान करता है।
आभार सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत ही सुंदर गजल |नव प्रयोग भी बहुत बेहतरीन |सादर अभिवादन
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद आदरणीय तुषार जी 🙏
हटाएंआप स्वयं ग़ज़ल लेखन में सिद्धहस्त हैं। आपके द्वारा मिली प्रशंसा मेरे लिए किसी पारितोषिक से कम नहीं।
पुनः आभार,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
सोचिए, कैसे मिले सदभावना
जवाब देंहटाएंद्वेष बो कर, द्वेष की मिलती फ़सल
बहुत खूब, ये सत्य कहा ,सादर नमन आपको
प्रिय कामिनी जी,
हटाएंआप जितनी अच्छी रचनाकार हैं, उतनी ही अच्छी सृजनपारखी भी...
बहुत शुक्रिया कि आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा 🙏
सस्नेह,
डॉ. वर्षा सिंह
वास्तविकता दर्शाती भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद गगन शर्मा जी 🙏
हटाएंआग्रह है मेरे ब्लॉग को भी फॉलो करें
जवाब देंहटाएंआभार
आदरणीय ज्योति खरे जी,
हटाएंनमस्कार 🙏
मैं As a Follower आपके ब्लॉग पर उपस्थित हो गई हूं।
आदरणीय, मैं अभी तक यही समझ रही थी कि मैं वर्षों पहले से आपकी follower हूं। आपने मेरे ब्लॉग पर टिप्पणी की तो आपके ब्लॉग पर जा कर इस यथार्थ से वाकिफ़ हुई कि मैं आज तक चर्चा मंच आदि के माध्यम से ही आपकी रचनाओं का रसास्वादन करती रही हूं।
हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
आपके ब्लॉग की नवीनतम फॉलोअर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर गज़ल, उत्प्रेरक , सुन्दर सन्देश लिए,
जवाब देंहटाएंसोचिए, कैसे मिले सदभावना
द्वेष बो कर, द्वेष की मिलती फ़सल....बहुत प्रभावी
आपकी इस मूल्यवान टिप्पणी के लिए हार्दिक धन्यवाद 'भ्रमर' जी 🙏
हटाएंलाजवाब शेर, खूबसूरत गज़ल, बहुत ही सुंदर संदेश देने वाली रचना वर्षा जी बधाई हो आपको नमन
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद ज्योति सिंह जी 🙏
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