ग़ज़ल पत्रिका By Dr Varsha Singh
परछाइयों से ज़िन्दगी दबती रही कहीं ?परछाइयों से ही ज़िन्दगी ज़िन्दगी रही
बहुत खूब!
स्वयं से पहले परछाईयों को पहचानना हो।
हर परछाई में जिंदगी का राज़ छिपा हैं यूँ तो उलटी दिशा से आती हुई रोशनी बना देती हैं एक नई सी परछाई जो साथ चलती तब तक ,जब तक वो खुद में ना छिप जाए || अंजु (अनु)
दूर रहने से ही सच से सामना हो पाता है ... उम्दा शेर ..
बेहतरीन पंक्तियाँ.....
.बहुत खूब ! बहुत खूब !
परछाइयों से ज़िन्दगी दबती रही कहीं ?
जवाब देंहटाएंपरछाइयों से ही ज़िन्दगी ज़िन्दगी रही
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंस्वयं से पहले परछाईयों को पहचानना हो।
जवाब देंहटाएंहर परछाई में जिंदगी का राज़ छिपा हैं
जवाब देंहटाएंयूँ तो उलटी दिशा से आती हुई रोशनी
बना देती हैं एक नई सी परछाई
जो साथ चलती तब तक ,
जब तक वो खुद में
ना छिप जाए || अंजु (अनु)
दूर रहने से ही सच से सामना हो पाता है ... उम्दा शेर ..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पंक्तियाँ.....
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