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रविवार, मार्च 25, 2018

क्या किया, सोचो कभी तो

बेबसी में ज़िन्दगानी
बोतलों में बंद पानी
काटना होगा जो बोया
है यही चिंता पुरानी
नीर के स्त्रोतों से कब तक
और होगी छेड़खानी
कल धरा का रूप क्या हो !
दिख रही जो आज धानी
गर नहीं सत्ता रहेगी
कौन राजा, कौन रानी !
क्या किया, सोचो कभी तो
गुम कुंआ, नदिया सुखानी
काटना होगा जो बोया
रीत दुनिया की पुरानी
रह न जाये याद बन कर
बूंद-"वर्षा" की कहानी
- डॉ. वर्षा सिंह

11 टिप्‍पणियां:

  1. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 27/03/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल ...
    छोटी बहर का कमाल है ...

    जवाब देंहटाएं
  3. आदरनीय वर्षा जी -- आपकी सुंदर रचना पढ़ी |बहुत अच्छी लगी | सभी पंक्तियाँ बहुत लाजवाब हैं | सादर ,सस्नेह ------

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर खूबसूरत रचना.....
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं