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सोमवार, अप्रैल 23, 2018

जाने कितना लिख्खा मैंने.... डॉ. वर्षा सिंह

जाने कितना लिख्खा मैंने
जाने कितना बांचा मैंने
आड़ी तिरछी इस दुनिया में
ढूंढा अपना खांचा मैंने

दागरहित जो दिखा हमेशा
वही फरेबी निकला अक्सर
बदनामी जिसके सिर चिपकी
उसको पाया सांचा मैंने

       🌺 - डॉ. वर्षा सिंह

1 टिप्पणी:

  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ३० अप्रैल २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।

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