Dr. Varsha Singh |
सोचो क्या होगा !
- डॉ. वर्षा सिंह
टूट गए सब धागे, सोचो क्या होगा !
बचे नहीं गर रिश्ते, सोचो क्या होगा !
उमड़ रहे हैं काले बादल पश्चिम से,
हाथ नहीं हैं छाते, सोचो क्या होगा !
धुंधलापन मन पर भी हावी लगता है,
आंखों फैले जाले, सोचो क्या होगा !
जमे हुए थे जो ''अंगद'' का पांव बने,
बदल लिए हैं पाले, सोचो क्या होगा।
भंवर मिले तो चप्पू साथ नहीं देते,
गर फंसने पर जागे, सोचो क्या होगा।
सांझ खड़ी है सिर पर, दीपक शेष नहीं,
गहरे होते साये, सोचो क्या होगा।
पानी देने में बरती कोताही तो,
सूखे सारे पत्ते, सोचो क्या होगा !
रात जुन्हाई की न समझी कद्र ज़रा
दिन में दिखते तारे, सोचो क्या होगा !
मौसम के ये खेल न "वर्षा" समझी है,
जीती बाजी हारे, सोचो क्या होगा !
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बहुत खूब.... ,सादर नमस्कार
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद कामिनी जी 🙏
हटाएंज़बाब नहीं आप की लेखिन का प्रिय सखी
जवाब देंहटाएंबेहतरीन 👌
सादर
हार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🙏
हटाएंबहुत सुंदर संयोजन रहता है चर्चा मंच पर.... मेरी पोस्ट को शामिल करने हेतु हार्दिक आभार 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार कविता वर्षाजी
जवाब देंहटाएंक
🙏
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