Dr. Varsha Singh |
मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18423
ग़ज़ल
बेटी
- डॉ. वर्षा सिंह
इक करिश्मा-सा हर इक बार दिखाती बेटी।
धूप में छांह का अहसास कराती बेटी।
वक़्त के साथ में चलने का हुनर आता है
वक़्त के हाथ से इक लम्हा चुराती बेटी।
गर्म रिश्तों की नई शाॅल बुना करती है
सर्द यादों के निशानात मिटाती बेटी।
फूल, खुश्बू तो कभी बन के हवा, पानी-सी
इक नई राह जमाने में बनाती बेटी।
रोशनी मां की यही और पिता का सपना
हर क़दम पर नई उम्मीद जगाती बेटी।
नाम सिमरन हो, वहीदा हो या कि हो ‘वर्षा’
प्यार के नूर से दुनिया को सजाती बेटी।
http://yuvapravartak.com/?p=19032
#ग़ज़लवर्षा
ग़ज़ल... बेटी - डॉ. वर्षा सिंह |
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 24 सितम्बर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार यशोदा जी 🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24-09-2019) को "बदल गया है काल" (चर्चा अंक- 3468) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हार्दिक आभार शास्त्री जी 🙏
हटाएंवाह बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वर्षा जी,
जवाब देंहटाएंआपकी इस सुन्दर कविता को पढ़ कर हर बेटी तो खुश होगी ही, दो बेटियों का यह बाप भी उसे पढ़कर अभिभूत हो गया है.
बहुत बहुत धन्यवाद गोपेश मोहन जी 🙏
हटाएंबहुत बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई।
शुक्रिया तहेदिल से
हटाएंकिसी भी धर्म के घर मे जनी बेटी
जवाब देंहटाएंरोशनी या नूर ही होती है।
उम्दा रचना।
आपके ब्लॉग पर पहली बार आना हुआ है। बहुत अच्छा लगा।
आप भी पधारें अंदाजे-बयाँ कोई और
हार्दिक धन्यवाद रोहितास जी 🙏
हटाएंबहुत लाजवाब सृजन....
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी 🙏
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