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शुक्रवार, दिसंबर 25, 2020

कच्ची नींदें, ख़्वाब अधूरे | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

कच्ची नींदें, ख़्वाब अधूरे 

-  डॉ. वर्षा सिंह


तेरा-मेरा एक किस्सा है 

दुख से घना-घना रिश्ता है 


तेरी आंख में आंसू आए 

मेरे दिल में कुछ चुभता है 


कच्ची नींदें, ख़्वाब अधूरे 

पत्ता-पत्ता जाग रहा है 


ख़ामोशी कब चुप रहती है 

हमने अक्सर उसे सुना है 


सुख के मौसम आते-जाते 

दुख का स्थाई डेरा है 


'पियू-पियू' रटता रहता है 

तन का पिंजरा, मन तोता है 


"वर्षा" के आंचल में बूंदें 

वक़्त का दरिया ख़ुश्क पड़ा है


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

4 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद जोशी जी
      🙏💐🙏
      - डॉ. वर्षा सिंह

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (27-12-2020) को   "ले के आयेगा नव-वर्ष चैनो-अमन"  (चर्चा अंक-3928)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय शास्त्री जी
      🙏💐🙏
      - डॉ. वर्षा सिंह

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