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सोमवार, दिसंबर 28, 2020

मेरी चाहत | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

मेरी चाहत

          -डॉ. वर्षा सिंह


धूप के दर से होकर चली जो हवा 

क्या बताएगी वो चांदनी का पता 


उसका ख़त आज की डाक में भी न था 

आज भी सांझ खाली गई इक दुआ 


अंजुरी में झरे फूल की पंखुरी 

ज़िन्दगी तुझको कैसे संवारे बता !


झील परछाइयों से लबालब भरी 

प्यार पलकों की कोरों में आकर चुआ 


ये भी सपनों को जीने का अंदाज़ है 

तन में सेमल खिले, मन बसंती हुआ 


मेरी चाहत किशन की बनी बांसुरी 

मैंने माथे पे कुमकुम लिया है सजा 


वो ही सावन है "वर्षा" वही है घटा 

फिर भी मौसम ये लगने लगा है नया


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

7 टिप्‍पणियां:

  1. मन को आनंदित करने वाली इस सूचना के लिए हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏🏻

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  2. लाजवाब अल्फाजों से सजी गजल।

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  3. सुकोमल भावनाओं से लबालब रचना । अति प्रशंसनीय ।

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