Dr. Varsha Singh |
यही कोशिश हो
- डॉ. वर्षा सिंह
रंग मेंहदी न बदल पाए, यही कोशिश हो
दहशतों से न दहल पाए, यही कोशिश हो
मन के आंगन में अंधेरों की जमी है काई
धूप आ कर न फिसल पाए, यही कोशिश हो
बीज की देह में पलती है हंसी जंगल की
फूल कोई न मसल पाए, यही कोशिश हो
उम्र गुज़री है हवाओं के तंज़ सहते हुए
ज़िन्दगी यूं न निकल पाए, यही कोशिश हो
राख होने से बचाना है अगर दुनिया को
आग कोई न उगल पाए, यही कोशिश हो
कौन कहता है कि धरती न रहेगी "वर्षा"
कोई मौसम न निगल पाए, यही कोशिश हो
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
बहुत खूब वर्षा जी, सम्भावनाओं की सुन्दर कोशिश..
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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अनीता सैनी
प्रिय अनीता सैनी जी,
हटाएंहार्दिक आभार... मेरी ग़ज़ल का चयन चर्चा हेतु करने के लिए।
शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
निश्चय ही यह एक अच्छी ग़ज़ल है आपकी वर्षा जी, सदा की भांति ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जितेन्द्र जी,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद अपनी अमूल्य टिप्पणी दे कर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए
सादर
डॉ. वर्षा सिंह
सदैव की भांति बेहतरीन भावों से सजी उम्दा ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया प्रिय मीना जी 🙏
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद जोशी जी 🙏
हटाएंग़ज़ल का हर एक अशआर सन्देश दे रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर।
अत्यंत आभार आदरणीय 🙏
हटाएंमन के आंगन में अंधेरों की जमी है काई
जवाब देंहटाएंधूप आ कर न फिसल पाए, यही कोशिश हो
बीज की देह में पलती है हंसी जंगल की
फूल कोई न मसल पाए, यही कोशिश हो
बहुत सुंदर...
अनुपम ग़ज़ल वर्षा दी ❗🙏❗
प्रिय बहन शरद, बहुत धन्यवाद ❤️
हटाएंसुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद ओंकार जी 🙏
हटाएंअमन-शांति बनी रहे यही आम इंसान की ख्वाहिश रहती है, सदा
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद गगन शर्मा जी 🙏
हटाएंराख होने से बचाना है अगर दुनिया को
जवाब देंहटाएंआग कोई न उगल पाए, यही कोशिश हो
वाह !! बहुत खूब वर्षा जी
मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आई, शुक्रिया प्रिय कामिनी जी 🙏
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