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गुरुवार, फ़रवरी 11, 2021

यही कोशिश हो | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh


यही कोशिश हो 


    - डॉ. वर्षा सिंह


रंग मेंहदी न बदल पाए, यही कोशिश हो 

दहशतों से न दहल पाए, यही कोशिश हो 


मन के आंगन में अंधेरों की जमी है काई 

धूप आ कर न फिसल पाए, यही कोशिश हो 


बीज की देह में पलती है हंसी जंगल की 

फूल कोई न मसल पाए, यही कोशिश हो 


उम्र गुज़री है हवाओं के तंज़ सहते हुए 

ज़िन्दगी यूं न निकल पाए, यही कोशिश हो 


राख होने से बचाना है अगर दुनिया को 

आग कोई न उगल पाए, यही कोशिश हो 


कौन कहता है कि धरती न रहेगी "वर्षा"

कोई मौसम न निगल पाए, यही कोशिश हो 


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)


20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब वर्षा जी, सम्भावनाओं की सुन्दर कोशिश..

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-०२-२०२१) को 'वक्त के निशाँ' (चर्चा अंक- ३९७६) पर भी होगी।

    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    अनीता सैनी

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    1. प्रिय अनीता सैनी जी,
      हार्दिक आभार... मेरी ग़ज़ल का चयन चर्चा हेतु करने के लिए।
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  3. निश्चय ही यह एक अच्छी ग़ज़ल है आपकी वर्षा जी, सदा की भांति ।

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    उत्तर
    1. आदरणीय जितेन्द्र जी,
      हार्दिक धन्यवाद अपनी अमूल्य टिप्पणी दे कर मेरा उत्साहवर्धन करने के लिए
      सादर
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. सदैव की भांति बेहतरीन भावों से सजी उम्दा ग़ज़ल ।

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  5. ग़ज़ल का हर एक अशआर सन्देश दे रहा है।
    बहुत सुन्दर।

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  6. मन के आंगन में अंधेरों की जमी है काई
    धूप आ कर न फिसल पाए, यही कोशिश हो

    बीज की देह में पलती है हंसी जंगल की
    फूल कोई न मसल पाए, यही कोशिश हो

    बहुत सुंदर...
    अनुपम ग़ज़ल वर्षा दी ❗🙏❗


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  7. अमन-शांति बनी रहे यही आम इंसान की ख्वाहिश रहती है, सदा

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  8. राख होने से बचाना है अगर दुनिया को

    आग कोई न उगल पाए, यही कोशिश हो

    वाह !! बहुत खूब वर्षा जी

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    1. मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आई, शुक्रिया प्रिय कामिनी जी 🙏

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