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सोमवार, फ़रवरी 15, 2021

फूल भर वसंत | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | ग़ज़लसंग्रह - दिल बंजारा


Dr. Varsha Singh

फूल भर वसंत


- डॉ. वर्षा सिंह


फूल भर वसंत, देह फागुनी हुई।

पंखुराई प्यास, आस दरपनी हुई।


सिर्फ़ एक नाम बार-बार होंठ पर

सिर्फ़ एक चाह बढ़ी, सौ गुनी हुई।


धूप-धूप सूरज, दिन सुनहरे हुए

यादों का चांद, रात चांदनी हुई।


आंचल का ठौर-खौर छू गई हवा

सांसों में ओर-छोर सनसनी हुई।


जंगल के अंग-अंग, छंद गंध के

पोखर का हार, नदी करधनी हुई।


मन में खजुराहो, तन ताज हो गया

आंखों में सपनों की  पाहुनी हुई।


आग फाग की पलाश में दहक उठी

गली-गली शहदीली गुनगुनी हुई।


प्रीत पगे मिसरे, रसधार प्यार की

‘वर्षा’ न बूंद, ग़ज़ल सावनी हुई।


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" से)

16 टिप्‍पणियां:

  1. "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी रचना को साझा करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार, प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. हार्दिक आभार प्रिय कामिनी सिन्हा जी 🙏

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  3. आप तो वसंत में ही सावन ले आईं वर्षा जी । बहुत सुंदर रचना; मन को हरषाने ही नहीं, हर लेने वाली । एक-एक शब्द से सुगंध आती है - वसंत की भी, प्रेम की भी ।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए सदैव अत्यंत महत्वपूर्ण रहती है। अनुगृहीत हूं कि आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा... बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏

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  4. उत्तर
    1. आदरणीय शास्त्री जी,
      हार्दिक धन्यवाद... आपकी टिप्पणी हमेशा मेरा उत्साहवर्धन करती है। मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आई यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है।
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  5. बहुत सुंदर ग़ज़ल...
    साधुवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹

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  6. सावनी ग़ज़ल जो पढ़ी "वर्षा" की
    दिल में न जाने कितनी धनक हुई ।।

    वाह , बहुत खूबसूरत ।

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    1. हृदयतल की गहराइयों से धन्यवाद आदरणीया 🙏

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  7. प्रतीकों के प्रयोग से सजी भावपूर्ण रचना..

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