फूल भर वसंत
- डॉ. वर्षा सिंह
फूल भर वसंत, देह फागुनी हुई।
पंखुराई प्यास, आस दरपनी हुई।
सिर्फ़ एक नाम बार-बार होंठ पर
सिर्फ़ एक चाह बढ़ी, सौ गुनी हुई।
धूप-धूप सूरज, दिन सुनहरे हुए
यादों का चांद, रात चांदनी हुई।
आंचल का ठौर-खौर छू गई हवा
सांसों में ओर-छोर सनसनी हुई।
जंगल के अंग-अंग, छंद गंध के
पोखर का हार, नदी करधनी हुई।
मन में खजुराहो, तन ताज हो गया
आंखों में सपनों की पाहुनी हुई।
आग फाग की पलाश में दहक उठी
गली-गली शहदीली गुनगुनी हुई।
प्रीत पगे मिसरे, रसधार प्यार की
‘वर्षा’ न बूंद, ग़ज़ल सावनी हुई।
----------------
(मेरे ग़ज़ल संग्रह "दिल बंजारा" से)
"सांध्य दैनिक मुखरित मौन" में मेरी रचना को साझा करने के लिए आपके प्रति हार्दिक आभार, प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-2-21) को "माता का करता हूँ वन्दन"(चर्चा अंक-3979) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार प्रिय कामिनी सिन्हा जी 🙏
हटाएंआप तो वसंत में ही सावन ले आईं वर्षा जी । बहुत सुंदर रचना; मन को हरषाने ही नहीं, हर लेने वाली । एक-एक शब्द से सुगंध आती है - वसंत की भी, प्रेम की भी ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जितेन्द्र माथुर जी, आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए सदैव अत्यंत महत्वपूर्ण रहती है। अनुगृहीत हूं कि आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा... बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद 🙏
हटाएंबसन्तोत्सव पर बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद... आपकी टिप्पणी हमेशा मेरा उत्साहवर्धन करती है। मेरी ग़ज़ल आपको पसंद आई यह मेरे लिए प्रसन्नता का विषय है।
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
बहुत सुंदर ग़ज़ल...
जवाब देंहटाएंसाधुवाद वर्षा दी 🌹🙏🌹
हार्दिक धन्यवाद प्रिय बहन शरद ❤️
हटाएंसावनी ग़ज़ल जो पढ़ी "वर्षा" की
जवाब देंहटाएंदिल में न जाने कितनी धनक हुई ।।
वाह , बहुत खूबसूरत ।
हृदयतल की गहराइयों से धन्यवाद आदरणीया 🙏
हटाएंप्रतीकों के प्रयोग से सजी भावपूर्ण रचना..
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अनुराधा जी 🙏
हटाएंसुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंसादर।
शुक्रिया तहेदिल से सधु चन्द्र जी 🙏
हटाएं