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सोमवार, अप्रैल 05, 2021

डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर | ग़ज़ल संग्रह | डॉ. वर्षा सिंह | पुस्तक समीक्षा | समीक्षक - डाॅ. चंचला दवे

Ghazal Jab Baat Karti Hai - A Ghazal Book By Dr. Varsha Singh

मेरे ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" की समीक्षा आज "आचरण", दैनिक समाचार पत्र दि. 05.04.2021 में प्रकाशित हुई है। समीक्षक डॉ. चंचला दवे एवं आचरण को हार्दिक आभार 🙏


पुस्तक समीक्षा

     डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर.                         

समीक्षक - डाॅ. चंचला दवे

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पुस्तक : ग़ज़ल जब बात करती है

कवयित्री: डाॅ. वर्षा सिंह

प्रकाशक: शिवना प्रकाशन, सीहोर (म.प्र.)

मूल्य   : रुपये 200/-

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ग़ज़ल पर बात करते हुए यदि इसके इतिहास पर दृष्टि डालें तो इसकी ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि यह है कि कसीदह, कसीदा मूल रुप से अरबी साहित्य की महत्वपूर्ण काव्य विधा है। जिसे युद्ध के मैदान में अपने कुल के बुजुर्गों के यशगान के तौर पर  पढ़़ा जाता है। कसीदे का यही रूप अरबी से गुजरता, फारसी में ईरान पहुंचा और इसी कसीदे की कोख से हमारी ग़ज़ल ने जन्म लिया, अरबी में ग़ज़ल नाम की कोई विधा नहीं है। वास्तव में ईरान में ही ग़ज़ल परवान चढ़ी और अपनी विशेषताओं के साथ इश्किया शायरी की ऐसी विधा के रुप में विकसित हुई कि सबकी महबूब बन कर हर दिल अजीज हो गई।

शिवना प्रकाशन से प्रकाशित ‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ पुस्तक बेहतरीन 105 ग़ज़लों का ऐसा गुलिस्ता है, जिसकी महक ग़ज़लों को पढ़ने के बाद दिल और आत्मा तक अपनी कहानी कहती नजर आती है। डॉ. वर्षा सिंह ग़ज़ल एवं समीक्षा के क्षेत्र में एक सशक्त हस्ताक्षर हैं जिन्होंने अनेक साहित्यिक मंचो को प्रतिष्ठा प्रदान की है, अनेक सम्मानों से विभूषित आप ब्लॉग लेखिका, स्तंभ लेखिका एवं अच्छी समीक्षक है। आपकी अनेक पुस्तके प्रकाशित हैं। यह आपका छठवां ग़ज़ल संग्रह है।

हर रचनाकार अपना अलग मिजाज रखता है और वह अपने देश, काल अपनी सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक साथ ही आर्थिक परिस्थितियों से पूर्णतः प्रभावित होता है। इन सबके दबावों के तहत ही वह अपनी रचना करता है। ‘‘एकला चलो रे’’ पर विश्वास करती हुई वे आशान्वित है,उनके पीछे, एक दिन अनुकरण करता हुआ पूरा समूह होगा। डॉ. वर्षा सिंह जी की पहली ग़ज़ल देखिए -

  चली हूं मै अकेली, साथ कल इक कारवां होगा

  न जो मिट पायेगा ऐसा कोई बाकि निशां होगा


डॉ. वर्षा स्वतंत्रता की पक्षधर है, परिंदो की उडानों पर पाबंदियों के सख्त खिलाफ है-

न हो पाबंदियां कोई  परिंदो की उड़ानो पर

नई होगी ज़मी बेशक़, नया इक आसमां होगा


संकलन की अनेक ग़ज़लें प्रेम, इश्क, रूमानियत के अहसासों से सराबोर हैं। डॉ. वर्षा सिंह जी की ग़ज़लें प्रेम में पगी हैं। प्रिय की प्रतीक्षा करती हुई वे कह उठती हैं-

उसी का नाम ले लेकर मेरे दिन रात कटते है

उसी के नूर से दुनियां सितारों सी चमकती है


चमन गुलज़ार उससे है, बहारों का वो साया है

कहीं से वो निकलता है,  गली मेरी महकती है


 ग़ज़ल के मूल में वार्तालाप है, संवाद है संप्रेषण है, ऐसी ग़ज़लें स्वाभाविक रीति से जन्म लेती हैं। ग़ज़लों में श्रृंगार  के संयोग और वियोग दोनों ही समाहित होते है, इनकी अनुपस्थिति भी ग़ज़लों को हल्का कर सकती है। परंतु डॉ. वर्षा सिंह जी की ग़ज़लों में मिलन और विरह के साथ धूप, सूरज और चांद अपनी हाजिरी देते चलते हैं। उदाहरण देखिए-

न पूछो दिन तुम्हारे बिन यहां कैसे गुजारे है

बिखरते इश्क के अल्फाज मुश्किल से संवारे है


लिखा था चांद का जिसमें पता, वो डायरी गुम है

यहो तो  आसमां में, बस,  सितारे  ही  सितारे हैं


डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में रूमानियत का एक अलग ही अंदाज़ देखने को मिलता है-

वो लम्हा आज भी है याद, जिसमें तुम मिले मुझको

सुलगती  दोपहर  में चांद जैसे  तुम  दिखे मुझको


इरादा नेक  गर  हो तो, खुदा भी मिल ही जाता है

बढ़ा कर हाथ  खुशियों ने  लगाया है  गले मुझको


अनेक ग़ज़लों में कवयित्री का मौलिक चिंतन, प्रबल भावों की उद्भावना, जन मानस के अंतर्मन पर छा जाने वाली जीवंत संवेदनाओं से ओत प्रोत, सहज, सरल शब्दावली के साथ ही मधुर स्वर से लयबद्ध गायकी सभागार में श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर देती है। डाॅ. वर्षा सिंह की ग़ज़लों में कहीं पर भी कृत्रिमता नजर नहीं आती। उनकी ग़ज़लें बातें करती हैं, संवाद करती हैं। वे लिखती हैं-

ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं

गमों की स्याह रातों में ख़ुशी के दीप जलते हैं


सुलझते  हैं  कई मसले, मधुर  संवाद करने से

भुला कर दुश्मनी मिलने के फिर, पैग़ाम मिलते हैं


इसी ग़ज़ल के एक शेर में वे कहती हैं-‘‘ जहां हो राम का मंदिर, वहीं अल्लाह का घर हो’’-इस महत्वपूर्ण ग़ज़ल के माध्यम से वर्षा जी समाज में एक सकारात्मकता का उद्घोष करती हैं। शांति और सद्भावना को स्थापित करती हुई वे कह उठती है-

समझना चाहिए यह सच, हमारे हर पड़ोसी को

जो टालो शांति से, टकराव भी चुपचाप टलते हैं

ग़ज़ल संग्रह " ग़ज़ल जब बात करती है" (डॉ. वर्षा सिंह) की समीक्षा

वर्षां जी की अनेक ग़ज़लें जीवन की बीहड़ता से उपजती त्रासदी को बयां करती है। वे शहर में रहते हुए गांव को भुला नहीं पाती हैं।

रास न  आया  शहर तुम्हारा, रास न आई  सड़क हमें

गांव भला था, गली भली थी तनिक न भाई सड़क हमें


मन करता है भोर का भूला, सांझ  गांव को लौट चले

सुआ बना  कर  क़ैद किए है, ये  हरजाई  सड़क हमें


 वर्तमान परिवेश में व्याप्त छल, झूठ, कपट के वातावरण में ईमानदारी से जीने की कठिनाई को व्यक्त करती हुई राष्ट्रपिता गांधी जी का स्मरण करती हुई कहती हैं कि -

सत्य अहिंसा को अपनाना, सबके बस की बात नहीं

राष्ट्र पिता गांधी हो जाना, सबके बस की बात नहीं


वर्षा सिंह जी एक संवेदनशील रचनाकार है, जगत में व्याप्त पशु-पक्षी और यहां तक की नन्ही सी चिड़िया के प्रति भी करुणा रखती है-

दाना-दुनका शेष नहीं है, खायेगी कैसे चिड़िया

आम, नीम भी बचे नहीं हैं, आयेगी कैसे चिड़िया


जगह नहीं है, जहां बन सके, निर्भय हो कर नीड़ नया

चोंच  दबा  कर  नन्हा  तिनका, लायेगी कैसे चिड़िया


वर्षा जी पुस्तकों से प्रेम करने वाली, अध्ययन में गहरी रूचि रखने वाली, कवयित्री हैं। वे पुस्तकों की महत्ता के बारे में कहती हैं-  

नया रंग जीवन में भरती किताबें

कड़ी धूप में  छांह बनती किताबें


वर्षा जी की ग़ज़लों में अपने रूप, प्रकृति एवं तरतीब की विशेषताओं के कारण उनमें लोच और लचक विद्यमान है। वे हर ग़ज़ल अपने खयाल और अहसास को पूरे सौंदर्य के साथ बयान करने की गुंजाइश रखती हैं। वर्षा सिंह जी की ग़ज़लों में युगीन चेतना के स्वर है। उनकी ग़ज़लों में मधुमास है, औरत है, परिंदे हैं, प्रेम हैं, पीड़ा है, मिलन के साथ वियोग है, देश है, धरती है, बारिश है, गांव है, शहर है, प्रकृति है, अतीत है, पक्षी और पानी भी है।

संवेदना की गहराई, अनुभूति की तीव्रता ग़ज़लों को विशेष बनाती है। वर्षा जी बनावट से दूर स्वाभाविक अभिव्यक्ति में विश्वास रखती है। महत्व की बात आज पानी कम होता जा रहा है, वे पानी को बचाने का आह्वान करती है-

जीवन जो  बचाना है,  पानी को बचाये हम

जलस्रोत सहेजें  फिर घाटों को सजाये हम


संकलन की भाषा सहज सरल है। कहीं कहीं अंग्रेजी के तो, कहीं पर लोक जीवन के शब्दो के आने से, सौंदर्य की अभिवृद्धि के साथ नव प्रयोग है- प्यूरी फायर, नावेल, पोखर, पनघट आदि। उदाहरण देखें-

प्यूरीफायर  देख  तैरते  आंखों  में

पोखर, पनघट, वाले गागर के सपने


अथवा,

फूल कापियों में रहते थे, नाॅवेल  काॅलेजी बुक में

अक्सर टेबिल की दराज़ में, रखा आईना रहता था


‘‘ग़ज़ल जब बात करती है’’ ग़ज़ल संग्रह सकल युग की चेतना का प्रतिबिंब है। यह समय की उस तपिश का बयान करती है,जो दिन प्रतिदिन भयावह होता जा रहा है। जब सारी दुनिया कोरोना के ताप से तप रही है, मंहगाई से जूझ रही है, ऐसे वक्त मे इस पुस्तक की ग़ज़लों को पढ़ना, महसूसना वर्षा ऋतु में सुंदर फसलों के लहलहाने जैसा है। अंत में शीर्षक की सार्थकता में मैं अपनी सहमति देती हूं कि -‘‘ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं’’। संरचना की द्दष्टि से वर्षा जी की ग़ज़लें समसामायिक है तथा उनकी ग़ज़लों के विषय का कैनवास  हमारे इर्द-गिर्द है। वर्षा जी पर मां सरस्वती की कृपा बरसती रहे। वे यशस्वी, दीर्घायु हो इन्ही मंगल कामनाओं के साथ।

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आलेख का Text साभार : डॉ. चंचला दवे

12 टिप्‍पणियां:

  1. चंचला जी की इस समीक्षा से ऐसा कौनसा व्यक्ति असहमत हो सकता है जिसने आपकी ग़ज़लों को पढ़ा, समझा और अनुभूत किया हो । इस समीक्षा के बहाने आपके द्वारा रचे गए ढेरों शेर फिर से पढ़ने को मिले, यह आपके प्रशंसकों के लिए बोनस है । आशा है, आपका यह ग़ज़ल संग्रह अधिकाधिक पाठकों तक पहुँचेगा और शायरी के लाखों शैदाई आपके सुखन की लज़्ज़त पा सकेंगे ।

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    1. निःशब्द हूं आपके उद्गार ने मुझे अभिभूत कर दिया है आदरणीय माथुर जी 🙏
      आभार...
      आभार...
      और
      आभार...
      .... किन्तु आभार शब्द भी मेरी अनुभूति की अभिव्यक्ति के लिए शायद पर्याप्त... अथवा सही शब्द नहीं है।
      कृपया इसी प्रकार अपना औदार्य बनाए रखें।
      अत्यंत विनम्रता सहित,
      सादर,
      भवदीया,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  2. बहुत सुंदर समीक्षा, बहुत बहुत बधाई वर्षाजी ।

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी 🙏

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (6-4-21) को "हार भी जरूरी है"(चर्चा अंक-4028) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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    1. प्रिय कामिनी सिन्हा
      हृदयतल की गहराइयों से हार्दिक आभार इस आनंददायी सूचना से अवगत कराने के लिए 🙏
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ़. वर्षा सिंह

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  4. चंचला जी ने लाजवाब समीक्षा की है आपके 'ग़ज़ल संग्रह'
    की..इस समीक्षा के लिए उनकी जितनी प्रशंसा की जाए कम होगी । आपको ग़ज़ल संग्रह के प्रकाशन पर बहुत बहुत बधाई वर्षा जी🙏🌹🙏

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय मीना जी 🙏
      आपकी टिप्पणी मेरे लिए बहुमूल्य है ।

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  5. मन को हर्षित करती सुंदर समालोचक समीक्षा, आपकी लेखनी के कई रंग पढ़ें और हमेशा पढ़ने की इच्छा रहेगी आपका ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल प्रेमियों के मध्य गर्मी में शीतल बयार का झोंका है ।
    बहुत बहुत बधाई वर्षा जी।
    और सुंदर समीक्षा के लिए डॉ. चंचला दवे जी को बहुत बहुत बधाई।

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  6. वाह .... बड़ी विस्तृत समीक्षा ... अच्छा लगा पढना ... यूँ आप अपनी गज़लें यहाँ पढवाती ही रहती हैं ...

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीया संगीता जी 🙏

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