- डॉ. वर्षा सिंह
नयन में उमड़ा जलद है।
नभ व्यथा का भी वृहद है।
आंसुओं से तर-बतर है
यह कथानक भी दुखद है।
इस दफा मौसम अजब है
आग मन में तन शरद है।
दोष क्या दें अब तिमिर को
रोशनी को आज मद है।
नींद को कैसे मनाएं
ख्वाब की खोई सनद है।
त्रासदी ‘वर्षा’ कहें क्या?
शत्रु अब तो मेघ खुद हैं।
नींद को कैसे मनाएं
जवाब देंहटाएंख्वाब की खोई सनद है।
बहुत खूबसूरत शे‘र हुआ है ,वर्षा जी बधाई
श्याम सखा श्याम
sundar...atisundar.....
जवाब देंहटाएंयह बैरी word verification हटाएं
जवाब देंहटाएंटिप्पणीकार को मुसीबत से निजात दिलाएं
बहुत दिनों बाद शुद्ध हिन्दी में एक ख़ूबसूरत ग़ज़ल पढने को मिली ,रचनाकारा मोहतरमा डा:वर्षा सिंह जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंसंजय दानी जी, आपको धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंइस घनघोर बरसात में आपका ये लिखना - शत्रु मेघ है ... बहुत खूब.. आपकी कविता बहुत सुन्दर लगी.. शुभप्रभात..
जवाब देंहटाएंडॉ. नूतन ‘अमृता’, आपको धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंनभ व्यथा का भी वृहद है....
जवाब देंहटाएंवाह... सुन्दर प्रयोंग.. सुन्दर ग़ज़ल...
सादर...
यशवन्त माथुर जी,
जवाब देंहटाएं05/09/2011 को मेरी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक करने के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद एवं आभार!
सदा जी,
जवाब देंहटाएंआपको बहुत-बहुत धन्यवाद!
S.M.HABIB ji,(Sanjay Mishra 'Habib')
जवाब देंहटाएंThanks for your comments.
Hope you will be give me your valuable response on my future posts.