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शनिवार, अक्तूबर 20, 2018

रवि शर्मा की ग़ज़लें

Dr. Varsha Singh
बहुमुखी प्रतिभा के धनी रवि शर्मा प्रेम ज्योति फाउंडेशन के संस्थापक एवं चेयरमैन हैं । लोकोपकारक और समाजसेवी हैं। वे साथ ही बहुत अच्छे कवि भी हैं। उनकी ग़ज़लों में रूमानियत इस तरह से रची बसी है मानों फूल में ख़ुशबू, मानों झरने में बूंदें और मानों गीत में सरगम…..

ज़िन्दगी का वो फ़साना ना रहा
दिल भी अब ये दीवाना ना रहा !

भीगें बरसातों में सोचा बरसों से
आज पर मौसम सुहाना ना रहा !

बेरूखियों से लफ़्ज भी गूँगे हुए
और वो दिलकश तराना ना रहा !

परछाँईयाँ पलकों में धुँधली हुई
कनखियों का मुस्कुराना ना रहा !

क्यूँ सुनाऊँ तुमको मैं शिकवे गिले
प्यार जब अपना पुराना ना रहा !

रवि शर्मा की की ग़ज़लों में जिंदगी के इंद्रधनुषी रंग बड़ी खूबसूरती से बिखरे हुए हैं। प्रस्तुत है उनकी ये ग़ज़ल……
Ravi Sharma

बस इक लम्हा तेरी ख़ुशबू का  गुज़ारा हमने ,
ज़िन्दगी भर उसे फिर दिल में  संवारा हमने !
जब भी यादों ने ख़्वाबों से ,जगाया है हमें ,
ले के होंठों पे हँसी तुमको पुकारा हमने !
कोई कहता हमें पागल तो दीवाना भी कोई ,
किया दुनिया का यूँ हँसना भी गंवारा हमने !
वक़्त चलता गया पानी के नज़ारों की तरह ,
चाहे कितना किया कश्ती से किनारा हमने !
याद है शाम वो ठहरी तेरी पहली वो नज़र ,
तब से खोया है हर इक साँस हमारा हमने !

रवि शर्मा की ग़ज़लों में चमत्कारी ढंग से प्रेम मानों सदेह उपस्थित है। शब्द शब्द कोमल भावनाओं को मुखरित करने वाला है……
Ravi Sharma

जब भी  दिल की ज़ुबान  सुनते हैं
ख़्वाब फिर  कुछ नये से  बुनते हैं !

रात भर  देख देख  तारों को
तभ भी  लाखों में एक  चुनते हैं !

टूटा ग़र  तारा  आसमां से कभी
अपनी आँखों के  तारे  गिनते हैं !

ग़र चुभें  आँखों में  टूटे तारे कभी
पलकों से  आँसुओं को  बिनते हैं !

ग़र हुई  तार तार  रूह भी कभी
रूई हसरत की फिर से  धुनते हैं !

Ravi Sharma
रवि की ग़ज़लगोई दिल को छू लेने वाली है। वे जब ग़ज़ल कहते हैं तो जैसे अनायास ही प्रकृति से बातें करते हुए प्रेम में डूब जाते हैं। उनकी ये ग़ज़ल देखें....



ख़ुशबू आई है  हवाओं में  बहारों की तरह
जब से पाया तुझे  ख़्वाब में  यारों की तरह !

मुझको जीना है  तेरे प्यार में  बाहों में तेरी
नहीं मरना मुझे  गुमनाम  बीमारों की तरह !

तू मेरी आँखों में  खिलती है  गुलशन की तरह
और तुझे चाहूँ  दिलकश मैं  नज़ारों की तरह !

तुझको माना है  हमेशा इक  अल्हड़ सी नदी
और तेरी चाह में  ठहरा हूँ  किनारों की तरह !

अब तो आजा कभी  धीरे से तू  पहलू में मेरे
या मुझे भर ले तू  बाहों में  सितारों की तरह !

रवि शर्मा की ख़ूबसूरत ग़ज़लोंं का रसास्वादन करने के लिये इस Link पर जाया जा सकता है....
http://www.ravisharma.in/category/poetry/ghazal/
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