Dr. Varsha Singh |
बहुत लुभाते बेघर को घर के सपने
घर में लेकिन आते बाहर के सपने
प्यूरीफायर देख तैरते आंखों में
पोखर, पनघट वाले, गागर के सपने
अपनों से अपमानित बूढ़ों से पूछो
कैसे उनकी चाहत के दरके सपने
वहशीपन ने बचपन के पर काट दिये
आंसू बन कर छलके अम्बर के सपने
कर्जे की गठरी से जिनकी कमर झुकी
कृषकों को आते हैं ठोकर के सपने
कंकरीट के जंगल वाले शहरों में
धूलधूसरित आंगन, छप्पर के सपने
सांसें जिसकी रखी हुई हों गिरवी में
दिल में घुटते बंधुआ चाकर के सपने
“वर्षा” की उम्मीदें, बादल आयेंगे
इक दिन पूरे होंगे सागर के सपने
-डॉ. वर्षा सिंह
#ग़ज़लवर्षा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 21 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार यशोदा अग्रवाल जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बर्षा जी भाव प्रणव रचना गहरी संवेदना और यथार्थ लिये। बहुत बहुत बधाई अप्रतिम लेखन के लिये ।
जवाब देंहटाएंकुसुम जी, आपने मेरी ग़ज़ल को सराहा.... हार्दिक आभार आपके प्रति 🙏
हटाएंसुन्दर । लिंक पहले नहीं खुल रहा था।
जवाब देंहटाएंजी, हार्दिक धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर....
जवाब देंहटाएंजो जिसके पास नहीं उसी के सपने
बहुत ही खूबसूरत रचना
हार्दिक आभार सुधा जी 🙏
हटाएंThanks for writing this useful article keep writing you are a great author thanks a lot
जवाब देंहटाएंloveshayari
lovely shayari