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शनिवार, नवंबर 24, 2018

ग़ज़ल .... चांद - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


रात के माथे टीका चांद
खीर सरीखा मीठा चांद

हंसी चांदनी धरती पर
आसमान में चहका चांद

महकी बगिया यादों की
लगता महका महका चांद

उजली चिट्ठी  चांदी- सी
नाम प्यार के लिखता चांद

"वर्षा" मांगे दुआ यही
मिले सभी को अपना चांद

 - डॉ. वर्षा सिंह

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाहहह अति सुंदर,मनभावन चाँद..👌👌
    चाँद मुझे भी बहुत पसंद..

    मेरी चार लाइन आपकी रचना पर-
    तोड़कर धागा चाँदनी का
    टूटे ख्वाबों को सी लूँ मैं

    भरकर एक कोना चाँद का
    सारे ग़म आँखों से पी लूँ मैं

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    उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी !

      आपकी पंक्तियां भी बहुत सुंदर हैं...

      तोड़कर धागा चाँदनी का
      टूटे ख्वाबों को सी लूँ मैं

      भरकर एक कोना चाँद का
      सारे ग़म आँखों से पी लूँ मैं

      वाह !

      हटाएं