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सोमवार, दिसंबर 17, 2018

ग़ज़ल ..... किताबें - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

लगती भले हों पहेली किताबें  ।
बनती हैं हरदम सहेली किताबें।

भले हों पुरानी कितनी भी लेकिन
रहती हमेशा नवेली किताबें।

देती हैं भाषा की झप्पी निराली
अंग्रेजी, हिन्दी, बुंदेली किताबें।

चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
नहीं रूठती इक अकेली किताबें।

शब्दों की ख़ुशबू से तर-ब-तर सी
महकाती "वर्षा", हथेली किताबें।

       📚📖 - डॉ. वर्षा सिंह

#ग़ज़लवर्षा

6 टिप्‍पणियां:

  1. चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
    नहीं रूठती इक अकेली किताबें।

    ...बिलकुल सच... किताबें ही एक सच्चा साथी हैं...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

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  2. किताबों का महत्व और हर दम हमदम सी किताबें बहुत सहज सरल मनभावन अभिव्यक्ति

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  3. चाहे ये दुनिया अगर रूठ जाये
    नहीं रूठती इक अकेली किताबें।
    वाह!!!
    सच्ची सहेली किताबें...
    बहुत लाजवाब

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  4. हार्दिक आभार पम्मी जी 🙏

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