Pages

गुरुवार, अगस्त 22, 2019

ग़ज़ल.... मूल्य जीवन के बदलते जा रहे - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 अगस्त 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=17783

ग़ज़ल

मूल्य जीवन के बदलते जा रहे ....

                 - डॉ. वर्षा सिंह

वर्जनाओं से बिखरते जा रहे
दर्पणी सपने दरकते जा रहे

जो अप्रस्तुत है उसी की चाह में
रिक्त सारे पंख झड़ते जा रहे

प्यार का मधुबन न उग पाया यहां
कसमसाते छंद ढलते जा रहे

कष्ट की काई जमीं हर शब्द पर
अर्थ के प्रतिबिंब मिटते जा रहे

चुक रहे संदर्भ रिश्तों के सभी
हम स्वयं से आज कटते जा रहे

लीक के अभ्यस्त पांवों के तले
मुक्ति के अनुबंध घिसते जा रहे

बन न पाया मन कभी निर्वात जल
हम हिलोरों में हुमगते जा रहे

और कब तक अंधकूपी रात दिन
पूछते पल-छिन गुज़रते जा रहे

जागरण “वर्षा’’ ज़रूरी हो गया
मूल्य जीवन के बदलते जा रहे

           ------------

#ग़ज़लवर्षा


8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह अद्भुत | क्या बात क्या बात क्या बात

    जवाब देंहटाएं

  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 23 अगस्त 2019 को साझा की गई है........."सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-08-2019) को "बंसी की झंकार" (चर्चा अंक- 3437) पर भी होगी।


    --

    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।

    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….

    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी पोस्ट का चयन करने के लिए हार्दिक आभार 🙏

    जवाब देंहटाएं
  5. चुक रहे संदर्भ रिश्तों के सभी
    हम स्वयं से आज कटते जा रहे
    वाह!!!
    बहुत लाजवाब...

    जवाब देंहटाएं