Dr. Varsha Singh |
मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 08 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18423
ग़ज़ल
ओ मेरी नादान ज़िन्दगी !
- डॉ. वर्षा सिंह
अब तो कहना मान ज़िन्दगी
सुख की चादर तान ज़िन्दगी
ढेरों आंसू लिख पढ़ डाले
रच ले कुछ मुस्कान ज़िन्दगी
अपनी मंजिल आप ढूंढ ले
ओ मेरी नादान ज़िन्दगी
रुठा- रुठी छोड़ अरे अब
दो दिन की मेहमान ज़िन्दगी
साथ किसी के कौन गया कब
इस सच को पहचान ज़िन्दगी
सारे मौसम इसके अनुचर
समय बड़ा बलवान ज़िन्दगी
हंसकर तय करने ही होंगे
सांसो के सोपान ज़िन्दगी
आह न निकले तनिक कंठ से
शिव बनकर विषपान ज़िन्दगी
"वर्षा" माटी का तन इस पर
करना मत अभिमान ज़िन्दगी
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#ग़ज़लवर्षा
http://yuvapravartak.com/?p=18423 |
कमाल की पंक्तियाँ और भाव है जी | बहुत बहुत शुभकामनायें आपको डाक्टर साब | लिखती रहे आप यूं ही |
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अजय कुमार जी 🙏
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-09-2019) को "स्वर-व्यञ्जन ही तो है जीवन" (चर्चा अंक- 3454) पर भी होगी।--
जवाब देंहटाएंचर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस सदाशयता के लिए हृदय से आभार 🙏
हटाएंवाह ... लाजवाब शेरो का संकलन है ये ग़ज़ल ...
जवाब देंहटाएंआपके द्वारा की गई प्रशंसा ने मेरी लेखनी की सार्थकता पर चार चांद लगा दिए.... बहुत बहुत धन्यवाद नासवा जी 🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
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हटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 11 सितंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत बहुत धन्यवाद पम्मी जी
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