- डॉ. वर्षा सिंह
सच की मूरत ढाली, अपना दोष यही
गढ़ी न सूरत जाली, अपना दोष यही
न्यायालय से न्याय न वर्षों मिल पाया
जेबें अपनी खाली, अपना दोष यही
हंसी-ठिठोली के मंचों से दूर रही
ग़ज़ल व्यथाओं वाली, अपना दोष यही
कैसे दिन को रात कहें, रातों को दिन
दुनिया देखी-भाली, अपना दोष यही
एक हाथ से कभी किसी भी अवसर पर
बजा ना पाए ताली, अपना दोष यही
युग के रंजीत परिधानों से दूर सदा
ओढ़ी "कमली-काली" अपना दोष यही
खर-पतवार भरे खेतों की बाहों में
ढूंढी जौ की बाली, अपना दोष यही
सपनों की भी मृगमरीचिका क्या कहिए
आयु व्यर्थ खो डाली, अपना दोष यही
अपनी विपदाएं ही "वर्षा" क्या कम थीं
जग की विपदा पाली, अपना दोष यही
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#ग़ज़ल #दोष #कमली #ग़ज़लवर्षा #मृृृगमरीचिका
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 20 नवंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपके प्रति अत्यंत आभार प्रिय यशोदा अग्रवाल जी 🙏
हटाएंछठ महापर्व की हार्दिक शुभकामनाओं सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
जी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२१-११-२०२०) को 'प्रारब्ध और पुरुषार्थ'(चर्चा अंक- ३८९८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत धन्यवाद अनीता जी 🙏
हटाएंबहुत ख़ूब वर्षा जी !
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद माथुर जी
हटाएंबहुत भावपूर्ण ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद,🙏
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद जोशी जी
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना,वर्षा दी।
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद ज्योति जी
हटाएंवाह सुंदर भावों से सजी भावपूर्ण ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद 🙏
हटाएंसारे शेर उम्दा लेखन हुए हैं... बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया विभा जी 🙏
हटाएंकैसे दिन को रात कहें, रातों को दिन
जवाब देंहटाएंदुनिया देखी-भाली, अपना दोष यही
- बढ़िया!
बहुत बहुत धन्यवाद प्रतिभा जी 🙏
हटाएंबहुत खूबसूरती से कहा कि ---खर-पतवार भरे खेतों की बाहों में
जवाब देंहटाएंढूंढी जौ की बाली, अपना दोष यही...जीवन को समेट दिया ...चित्र भी बहुत खूबसूरत रहा..वर्षा जी
हार्दिक धन्यवाद अलकनंदा जी 🙏
हटाएंसच की मूरत ढाली, अपना दोष यही
जवाब देंहटाएंगढ़ी न सूरत जाली, अपना दोष यही
....।हर पंक्ति में एक सुंदर तथ्य...।सच्चाई के नज़दीक ,बहुत ही उम्दा कृति..।
बहुत धन्यवाद जिज्ञासा जी 🙏🙏
हटाएंअपनी विपदाएं ही "वर्षा" क्या कम थीं
जवाब देंहटाएंजग की विपदा पाली, अपना दोष यही
वाह!!!
कमाल की गजल
एक से बढ़कर एक शेर...।
बहुत धन्यवाद सुधा जी 🙏
हटाएंआपकी ग़ज़ल बहोत ख़ूबसूरत है, अविरल प्रवाह के साथ बहती हुई पाठकों को प्रभावित करती है - - नमन सह।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद शांतनु जी 🙏
हटाएंअपना दोष यही....
जवाब देंहटाएंविलम्ब से प्रतिक्रिया दे पाने हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ। सटीक रचना का सृजन हुआ है आपकी कलम से।
लोग कहते हैं ना, "सत्यम ब्रूयात,प्रियम ब्रुयात, अप्रियम सत्यम न ब्रुयात।"
सच की मूरत ढाली, अपना दोष यही
गढ़ी न सूरत जाली, अपना दोष यही।।।
वाह, साधुवाद आदरणीया। ।।।
बहुत बहुत धन्यवाद सिन्हा जी 🙏
हटाएंशानदार।
जवाब देंहटाएंThanks for your compliment 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद आलोक जी 🙏
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