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बुधवार, दिसंबर 16, 2020

सच तो ये है | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

सच तो ये है
       -  डॉ. वर्षा सिंह

रेशमी फूल हवा भी ताज़ा
ख़त मेरे नाम क्यों नहीं आया

झील में अक़्स देखना मुश्किल
इस तरफ हैं शजर, उधर छाया

दौड़ती- भागती हुई दुनिया
इस सड़क को कहीं नहीं जाना

सच तो ये है कि एक ख़ामोशी
कह रही आज शोर की गाथा

धुपधुपाती है मोमबत्ती सी
सांस का देह से यही नाता

उम्र मेरी तमाम भीग गई
चूम कर वो गया मेरा माथा

शीत-"वर्षा" का ये अजब मौसम
बर्फ सी रात, दिन हुआ पारा

            ---------------
(मेरे ग़ज़ल संग्रह - "सच तो ये है" से)

23 टिप्‍पणियां:

  1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  2. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 18-12-2020) को "बेटियाँ -पवन-ऋचाएँ हैं" (चर्चा अंक- 3919) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
    धन्यवाद.

    "मीना भारद्वाज"

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    उत्तर
    1. प्रिय मीना जी,
      मुझे यह जान कर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि मेरी पोस्ट को आपने चर्चा मंच हैतु चयनित किया है। हार्दिक आभार आपके प्रति 🙏🍁🙏
      सस्नेह,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 17 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    उत्तर
    1. प्रिय यशोदा जी,
      हार्दिक आभार आपके प्रति यशोदा जी 🌹🙏🌹


      हटाएं
    2. प्रिय यशोदा जी,
      हार्दिक आभार आपके प्रति यशोदा जी 🌹🙏🌹


      हटाएं
  4. वाह!बहुत ही सुंदर सृजन दी।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  5. खूबसूरत अहसासों से भरी उम्दा ग़ज़ल..।

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  6. बहुत शुक्रिया अनुराधा जी 🙏

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  7. बहुत उम्दा ग़ज़ल , बेहतरीन बंद है सब वाह!

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  8. धुपधुपाती है मोमबत्ती सी
    सांस का देह से यही नाता


    बहुत सुन्दर.....

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