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शुक्रवार, दिसंबर 18, 2020

सहर देते जाना | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

सहर देते जाना

     -  डॉ. वर्षा सिंह


आओ तो अपनी ख़बर देते जाना

ज़्यादा नहीं इक नज़र देते जाना


ज़रूरत है कुछ एक अच्छे दिनों की

रातों को उजली सहर देते जाना


भले रह गई ज़िन्दगी ये अधूरी

ग़ज़ल इक मुकम्मल मगर देते जाना


कहीं आलसी हो के मन टिक न जाए

यादों का लम्बा सफ़र देते जाना


अगर हाथ खाली ही आओ यहां तो

चलो कुछ नहीं तो सिफ़र देते जाना


"वर्षा" के ग़मगीन सीले दिनों को

जाड़ों की इक दोपहर देते जाना


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(मेरे ग़ज़ल संग्रह - "सच तो ये है" से)



20 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना आज शनिवार 19 दिसंबर 2020 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,

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    1. हार्दिक आभार श्वेता सिन्हा जी, "सांध्य दैनिक मुखरित मौन" हेतु मेरी पोस्ट को चयनित करने के लिए 🙏🙏🌷🙏🙏

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  2. उत्तर
    1. शुक्रिया तहेदिल से आदरणीय सुशील कुमार जोशी जी 🙏🌷🙏

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (20-12-2020) को   "जीवन का अनमोल उपहार"  (चर्चा अंक- 3921)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. आदरणीय शास्त्री जी,
      यह आपकी सदाशयता है, जो आपने मेरी पोस्ट का चयन ब्लॉग जगत में प्रतिष्ठित मंच "चर्चा मंच" हेतु किया है।
      हार्दिक आभार 🙏🌷🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. "वर्षा" के ग़मगीन सीले दिनों को

    जाड़ों की इक दोपहर देते जाना - -बहुत सुन्दर ग़ज़ल।

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  5. अगर हाथ खाली ही आओ यहाँ तो
    चलो कुछ नहीं तो सिफ़र देते जाना

    "वर्षा" के ग़मगीन सीले दिनों को
    जाड़ों की इक दोपहर देते जाना

    –आप बून्द मैं ज्योत्स्ना
    बिखरी सतरंगी छटा
    मुझे रचना पढ़ ऐसी ही अनुभूति हुई

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद इस आत्मीय टिप्पणी के लिए प्रिय विभा जी 🙏

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  6. कहीं आलसी हो के मन टिक न जाए

    यादों का लम्बा सफ़र देते जाना...‍कहां चुप बैठने देंगी ये पंक्ति‍यां वर्षा जी...

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    1. हार्दिक आभार अलकनंदा जी, आपकी आत्मीयता भरी यह टिप्पणी मेरे लिए अमूल्य है।

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  7. अगर हाथ खाली ही आओ यहां तो
    चलो कुछ नहीं तो सिफ़र देते जाना

    लाजवाब ग़ज़ल....
    बहुत खूबसूरत....

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह❤️🌹❤️

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    1. हार्दिक धन्यवाद प्रिय अनीता जी 🙏❤️🙏

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  9. बहुत ख़ूब वर्षा जी ! क्या कहने हैं इस ग़ज़ल के !

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