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बुधवार, फ़रवरी 03, 2021

कील - कांटों भरी राह | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

कील - कांटों भरी राह


            - डॉ. वर्षा सिंह


रात बुझती नहीं दिन सुलगता नहीं 

रुख़ हवा का जरा भी बदलता नहीं 


मेरे आंगन को किसकी नजर लग गई 

द्वार सूना है, सपना ठहरता नहीं 


ज़िन्दगी की नदी और पुल अधबने

धार में है भंवर, घाट मिलता नहीं 


कील - कांटों भरी राह, क्या कीजिए !

ज़िद पे आया है मन, आज रुकता नहीं


बंद हैं खिड़कियां, बंद सम्वाद हैं

कोई करके पहल बात करता नहीं


मौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें 

फूल खिलता है लेकिन महकता नहीं 


एक बादल लिपटकर मेरी देह से

बूंद "वर्षा" की बन के बरसता नहीं 


---------


(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)

21 टिप्‍पणियां:

  1. इस ग़ज़ल के एक-एक लफ़्ज़ से मैं अपने आपको जोड़ सकता हूँ वर्षा जी । इसलिए आपकी इस ग़ज़ल ने मेरे दिल को महज़ छुआ नहीं है बल्कि यह मेरे दिल की तलहटी में उतर गई है - हमेशा के लिए ।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
      आपने अपनी सदाशयता से मुझे जो मान दिया है, वह मेरे लिए अमूल्य है। मेरा लेखन मुझे सार्थक लगने लगा है।
      असीम आत्मीय आभार सहित,
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज बुधवार 03 फरवरी को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी 🙏

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  3. "मौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें

    फूल खिलता है लेकिन महकता नहीं "

    सत्य कहा आपने।

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  4. कील - कांटों भरी राह, क्या कीजिए !
    ज़िद पे आया है मन, आज रुकता नहीं

    बंद हैं खिड़कियां, बंद सम्वाद हैं
    कोई करके पहल बात करता नहीं

    वाह !!!
    लाजवाब !!!

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    उत्तर
    1. शुक्रिया तहेदिल से प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️

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  5. मौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें

    फूल खिलता है लेकिन महकता नहीं

    बहुत खूब वर्षा जी,सादृनमन आपको

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  6. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  7. मन को छूती भावपूर्ण गजल
    बधाई

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    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे 🙏

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  8. हार्दिक आभार प्रिय अनीता सैनी जी 🙏

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  9. बहुत धन्यवाद प्रिय अभिलाषा जी

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