कील - कांटों भरी राह
- डॉ. वर्षा सिंह
रात बुझती नहीं दिन सुलगता नहीं
रुख़ हवा का जरा भी बदलता नहीं
मेरे आंगन को किसकी नजर लग गई
द्वार सूना है, सपना ठहरता नहीं
ज़िन्दगी की नदी और पुल अधबने
धार में है भंवर, घाट मिलता नहीं
कील - कांटों भरी राह, क्या कीजिए !
ज़िद पे आया है मन, आज रुकता नहीं
बंद हैं खिड़कियां, बंद सम्वाद हैं
कोई करके पहल बात करता नहीं
मौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें
फूल खिलता है लेकिन महकता नहीं
एक बादल लिपटकर मेरी देह से
बूंद "वर्षा" की बन के बरसता नहीं
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(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)
इस ग़ज़ल के एक-एक लफ़्ज़ से मैं अपने आपको जोड़ सकता हूँ वर्षा जी । इसलिए आपकी इस ग़ज़ल ने मेरे दिल को महज़ छुआ नहीं है बल्कि यह मेरे दिल की तलहटी में उतर गई है - हमेशा के लिए ।
जवाब देंहटाएंआदरणीय जितेन्द्र माथुर जी,
हटाएंआपने अपनी सदाशयता से मुझे जो मान दिया है, वह मेरे लिए अमूल्य है। मेरा लेखन मुझे सार्थक लगने लगा है।
असीम आत्मीय आभार सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 03 फरवरी को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय दिग्विजय अग्रवाल जी 🙏
हटाएं"मौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें
जवाब देंहटाएंफूल खिलता है लेकिन महकता नहीं "
सत्य कहा आपने।
बहुत शुक्रिया यशवन्त माथुर जी 🙏
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंकील - कांटों भरी राह, क्या कीजिए !
जवाब देंहटाएंज़िद पे आया है मन, आज रुकता नहीं
बंद हैं खिड़कियां, बंद सम्वाद हैं
कोई करके पहल बात करता नहीं
वाह !!!
लाजवाब !!!
शुक्रिया तहेदिल से प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमौसमों का ये अंदाज़ भी क्या कहें
जवाब देंहटाएंफूल खिलता है लेकिन महकता नहीं
बहुत खूब वर्षा जी,सादृनमन आपको
बहुत धन्यवाद प्रिय कामिनी जी🙏
हटाएंउम्दा अशआर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।।
हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏
हटाएंबहुत खूब !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया तहेदिल से गगन शर्मा जी 🙏
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमन को छूती भावपूर्ण गजल
जवाब देंहटाएंबधाई
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय ज्योति खरे 🙏
हटाएंहार्दिक आभार प्रिय अनीता सैनी जी 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत धन्यवाद प्रिय अभिलाषा जी
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