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शनिवार, फ़रवरी 06, 2021

ग़ज़लों के भीतर | ग़ज़ल | डॉ. वर्षा सिंह | संग्रह - सच तो ये है

Dr. Varsha Singh

ग़ज़लों के भीतर


     -डॉ. वर्षा सिंह


मेरा दिल उसके दिल के दरवाज़े पर 

जैसे धरती के आगे फैला सागर


तितली, फूल, हवा, पानी के रिश्ते में 

साझा ख़ुशबू, साझा हैं ढाई आखर 


शर्त अजब है चाहत की इस बस्ती में 

ख़ुद को पाना है तो ख़ुद को ही खो कर 


वो दिन भी क्या दिन थे, हम आजू-बाजू

घंटों बैठे रहते थे कंप्यूटर पर 


सारे मौसम झोली में भर लाया दिन 

सांझ हुई तो फिसला उन में ही अक्सर 


यूं तो पत्थर को भी पूजा है हमने

बेशक पत्थर से ही खाई है ठोकर


फटें, और फिर सीने की नौबत आए

कभी न होने देना रिश्तों को जर्जर


ख़ूब बहाने हैं दिल को बहलाने के 

यकीं न हो तो उतरो ग़ज़लों के भीतर 


अपनी-अपनी दुनिया, अपनी पहचानें 

झील के माथे जैसे "वर्षा" का झूमर


---------

 

(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)


18 टिप्‍पणियां:

  1. यूं तो पत्थर को भी पूजा है हमने, बेशक पत्थर से ही खाई है ठोकर । जी हाँ वर्षा जी, संवेदनशील और भावुक लोगों के साथ ऐसा हो जाता है और ऐसे ही वे स्वयं होते हैं । और आपके इस अशआर से भी कविता, शायरी और मौसीक़ी के शैदाई इत्तफ़ाक़ ज़ाहिर करेंगे कि ख़ूब बहाने हैं दिल को बहलाने के, यकीं न हो तो उतरो ग़ज़लों के भीतर । बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही आपने ।

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    1. आदरणीय जितेन्द्र जी,
      ये मेरी ख़ुशनसीबी है कि आप जैसे प्रबुद्ध मनीषी मेरे ब्लॉग पर आ कर अपनी प्रतिक्रिया दे कर मेरा उत्साहवर्धन करते हैं।
      हार्दिक आभार आदरणीय 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  2. उत्तर
    1. हार्दिक धन्यवाद आदरणीय 🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (07-02-2021) को "विश्व प्रणय सप्ताह"   (चर्चा अंक- 3970)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    "विश्व प्रणय सप्ताह" की   
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी🙏
      सादर,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज शनिवार 06 फरवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार प्रिय दिव्या अग्रवाल जी🙏
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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  5. उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद आदरणीय शांतनु सान्याल जी 🙏

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  6. ख़ूब बहाने हैं दिल को बहलाने के
    यकीं न हो तो उतरो ग़ज़लों के भीतर
    बहुत खूब वर्षा जी ! निशब्द हूँ आपकी भावाभिव्यक्ति के समक्ष।
    लाज़वाब सृजन।

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    1. प्रिय मीना जी, बहुत अच्छा लगा यह जान कर कि मेरी गज़ल आपको रुचिकर लगी। हार्दिक धन्यवाद 🙏

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  7. अद्धभुत ग़ज़ल
    सारे शेर एक से बढ़कर एक
    असीम शुभकामनाओं के संग हार्दिक बधाई उम्दा सृजन हेतु

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    1. आपकी इस आत्मीयता से अभिभूत हूं। बहुत धन्यवाद आदरणीया विभा रानी जी 🙏

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  8. तितली, फूल, हवा, पानी के रिश्ते में
    साझा ख़ुशबू, साझा हैं ढाई आखर

    बहुत खूबसूरत ग़ज़ल 🌹🙏🌹

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    1. बहुत शुक्रिया प्रिय बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ❤️

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  9. बहुत उम्दा।
    आपकी ग़ज़लें मुझे ग़ज़ल लिखने के लिए प्रेरित करती हैं।

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    1. सतीश रोहतगी जी,
      यह मेरे लिए अत्यंत सम्मान का विषय है कि मेरी ग़ज़लें आपको ग़ज़ल लिखने हेतु प्रेरणा देने का काम करती हैं। हार्दिक धन्यवाद 🙏
      मेरे ब्लॉग पर सदैव आपका स्वागत है।
      शुभकामनाओं सहित,
      डॉ. वर्षा सिंह

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