Dr. Varsha Singh |
लगी कहां पर चोट न पूछो
हुआ कहां विस्फोट न पूछो
पैबंदों की भीड़ है यहां है
किसका साबुत कोट न पूछो
क्यों हर बार पीटी है भैया
सच्चाई की गोट न पूछो
छुपे हुए हैं कितने आंसू
मुस्कानों की ओट न पूछो
बीते दिन की परछाई क्यों
मन को रही कचोट न पूछो
जीवन कैसे क्रय करते हैं
कागज के ये नोट न पूछो
जो चाहा वह मिला न "वर्षा"
क़िस्मत में क्या खोट न पूछो
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