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सोमवार, मार्च 30, 2020

एक ग़ज़ल कोरोना संकट पर.....कोरोना घातक है, समझो ! -डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

         .कोरोनावायरस और सम्पूर्ण भारत में 21 दिन का लॉकडाउन ... तरह -तरह के समाचार, तरह- तरह के विचार आप लगातार पढ़- सुन रहे हैं... तो पढ़िए मेरी भी यह ताज़ा ग़ज़ल ......

एक ग़ज़ल कोरोना संकट पर

कोरोना घातक है, समझो !
      -डॉ. वर्षा सिंह

दे सकता है हमें सुरक्षा, दरवाज़े का इक ताला।
घर पर रहने पर टूटेगी, कोरोना की ये माला।

चाइनीज़ हो या हो स्पेनिश, फ़र्क भला क्या पड़ता है,
कोरोना घातक है, समझो! ये छोड़ो किसने पाला।

सीख अगर देता है कोई, तो क्या स्वयं निभाता है ?
सही मायने में वह ज्ञानी, जिसने कर्मों में ढाला ।

सख़्ती बरत रहे हैं जो मत उन पर अब लानत भेजो,
उनकी कर्मठता से बेशक, संकट जा सकता टाला।

"वर्षा" वे जन पूजनीय हैं जो परहित के लिए जिए,
शिव ने गले लगाया हंस कर विष से भरा हुआ प्याला ।
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        मेरी इस ताज़ा ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
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गुरुवार, मार्च 26, 2020

एक ग़ज़ल देशबंदी यानी टोटल लॉकडाउन के दौरान... दौर है ये आज़माइश का - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

      कोरोनावायरस को फैलने से रोकने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी के द्वारा खींची गई एक अदृश्य लक्ष्मण रेखा को महसूस करते हुए मैं, आप, हम सभी भारतवासी 21 दिन के लॉकडाउन का पालन करते हुए अपने घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं ... तो पढ़िए मेरी यह ग़ज़ल देशबंदी यानी टोटल लॉकडाउन के दौरान...

दौर है ये आज़माइश का
         - डॉ. वर्षा सिंह

दौर है ये आज़माइश का, ज़रा धीरज धरो
कुछ दिनों की बात है फिर ख़ूब मनचाहा करो

स्याह पन्ने फाड़ कर उजली कथाएं कुछ लिखो
पृष्ठ जो हैं रिक्त, उनमें रंग जीवन का भरो

ख़ुद के दुख की दास्तानों का न कोई अंत है
भूल अपने ग़म सभी तुम पीर ग़ैरों की हरो

वक़्त है एकांत का, रहना स्वयं की क़ैद में
अब मनुजता को स्वयं के धैर्य से तारो- तरो

याद रखना वक़्त रुकता है न अच्छा ना बुरा
खेल सारा कुछ पलों का है तो आखिर क्यों डरो

मृत्यु की तय है घड़ी और ज़िन्दगी के दिन भी तय
सोच कर अंतिम क्षणों को किसलिए प्रतिपल मरो

शुष्कता ने बोरियत से भर दिया वातावरण
बन के "वर्षा"- बूंद, सूखी इस धरा पर तुम झरो
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मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 26 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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शनिवार, मार्च 21, 2020

विश्व वानिकी दिवस, 21 मार्च पर विशेष ग़ज़ल .... जंगल - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

विश्व वानिकी दिवस, 21 मार्च पर विशेष ग़ज़ल

      जंगल
               - डॉ. वर्षा सिंह

है दरख़्तों  की शायरी जंगल।
धूप - छाया की डायरी जंगल।

बस्तियों से निकल के तो देखो
ज़िन्दगी की है ताज़गी जंगल।

गूंजती हैं ये वादियां जिससे
पर्वतों  की है बांसुरी  जंगल।

दिल से  पूछो ज़रा  परिंदों के
खुद फ़रिश्ता है, ख़ुद परी जंगल।

नाम  ‘वर्षा’  बदल भी जाए तो
यूं न  बदलेगा ये  कभी जंगल।

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जंगल पर शायरी - डॉ. वर्षा सिंह

प्रिय मित्रों,   
      आज विश्व वानिकी दिवस के अवसर पर मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 21 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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शुक्रवार, मार्च 20, 2020

Dr. Varsha Singh


    विश्व गौरैया दिवस पर विशेष ग़ज़ल

       चिड़िया
                - डॉ. वर्षा सिंह
   
अब घर की मुंडेरों पर, दिखती ही नहीं चिड़िया।
पंखों में खुशी भर कर, उड़ती ही नहीं चिड़िया।

स्वारथ की कुल्हाड़ी ने  जंगल को मिटा डाला
विश्वास के दानों को, चुगती ही नहीं चिड़िया।

तिनका भी नहीं मिलता, अब नीड़ बनाने को
सपनों की उड़ानें भी भरती ही नहीं चिड़िया।

ध्वनियां  हैं बहुत सारी, बेचैन  हवाओं में
फूलों से  नई बातें करती ही नहीं चिड़िया।

दुबकी है कहीं जा कर, अनजान ठिकाने में
‘वर्षा’ के इशारे भी पढ़ती ही नहीं चिड़िया।

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#ग़ज़लवर्षा
#ghazal_varsha


   आज विश्व गौरैया दिवस के अवसर पर मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 20 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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मंगलवार, मार्च 17, 2020

ग़ज़ल... जंग छिड़ी है कुर्सी की - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

     समसामयिक घटनाक्रमों ... वर्तमान हालातों पर आज मेरी ताज़ा ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 17 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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ग़ज़ल

जंग छिड़ी है कुर्सी की
            -डॉ. वर्षा सिंह

निष्ठा पर भी दाम लगे बाज़ारों में
चमक नहीं अब शेष चुनावी नारों में

जनता की आवाज़ सुनाई दे कैसे
शोर बहुत है सत्ता के गलियारों में
         
रंगमंच पर अभी यवनिका पतन कहां!
जोश बहुत है बेशक नाटककारों में

धराशायी करने की तिकड़म जारी है
जंग छिड़ी है कुर्सी की अब यारों में

स्वार्थसिद्ध करने को ही चमकीं अक्सर
बहुत धार है जंग लगी तलवारों में

शब्द लांछित हों गर कहने-सुनने से
कर लेना कुछ बातें ज़रा इशारों में

मझधारों में नाव उलटने की साज़िश
होड़ लगी है "वर्षा" यहां किनारों में
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#ग़ज़लवर्षा
#युवाप्रवर्तक


रविवार, मार्च 15, 2020

ग़ज़ल ... अगले पल का पता नहीं - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

ग़ज़ल
        - डॉ. वर्षा सिंह

अगले पल का पता नहीं फिर लफड़ा क्यों ?
सबसे ख़ुद को साबित करना तगड़ा क्यों ?

गली, मुहल्ला, शहर सभी हैं एक अगर
हम दोनों के बीच आपसी झगड़ा क्यों ?

माना टकराहट है कहीं विचारों में
तो भी आखिर मार-कुटौव्वल पचड़ा क्यों ?

अच्छे कपड़ों में सज कर कब सोचा है !
पत्थर तोड़ रही वह पहने चिथड़ा क्यों ?

मुस्काते चेहरों वाली इस महफ़िल में
पता नहीं "वर्षा" ने रोया दुखड़ा क्यों ?

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      मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 28 फरवरी 2020 में स्थान मिला है।
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#ग़ज़लवर्षा
#ghazal_varsha
#युवाप्रवर्तक


ग़ज़ल ... उसे देखा नहीं - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

उसे देखा नहीं, अरसा हुआ है.
वो मुझसे बेवज़ह रूठा हुआ है

हरा जो बाग़ दिखता काग़ज़ों पर
हक़ीक़त में मगर उजड़ा हुआ है

लगे हैं क्लोज सर्किट राजपथ में
गली में रेप बच्ची का हुआ है

उसे भ्रम है कि दुनिया जानती है
इसी भ्रमजाल में जकड़ा हुआ है

हुए दिन- रात के चौबीस घंटे
शहर में क्या कहें, क्या-क्या हुआ है

बढ़ी है क़द्र मेरी परिचितों में
मेरा दीवान इक शाया हुआ है

दिनों के बाद अब  "वर्षा" हुई है
चलो, कुछ तो कहीं अच्छा हुआ है
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#ग़ज़लवर्षा
#ghazal_varsha

      मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 27 फरवरी 2020 में स्थान मिला है।
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शनिवार, मार्च 14, 2020

ग़ज़ल : संदर्भ रंगपंचमी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh with Dr. (Miss) Sharad Singh


लगा है आज रंग तो, लगा है फिर गुलाल भी ।
हुई  है लाल  चूनरी, हुए  हैं लाल गाल भी ।

गली में, खेत में, वनों में,  उड़ रहा अंबीर है,
हुई है लाल  आज तो ये टेसुओं की डाल भी ।

हुआ है आज कृष्ण मन, तो राधिका ये देह है
गुज़र रहा हरेक पल, खुशी   से है निहाल भी ।

मिटा के सारी दुश्मनी, लगाएं आज हम गले
भुला के हर उलाहने, मिटा दें हर सवाल भी ।

ज़रा सी हों शरारतें , ज़रा सी शोख़ हरकतें
रहे न कोई गमज़दा,  मचे ज़रा धमाल भी ।

हुआ है फागुनी हवा का, इस क़दर असर यहां
मचल उठी है चाहतें,  बदल गई है चाल भी ।

न आंख नम रहे कोई, न ‘‘वर्षा ’’ आंसुओं की हो
खुशी की राग-रागिनी, खुशी  के सुर भी, ताल भी ।

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रंगपंचमी के अवसर पर आज मेरी ताज़ा ग़ज़ल को web पत्रिका युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 14 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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ग़ज़ल : संदर्भ होली - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

जहां पे शीत थी खड़ी, वहां पे आज है तपन।
रंग और गुलाल ने किया है आज आचमन।

वनों में खिल रहे पलाश, लाल सुर्ख आग से,
हवा की चाल में झलक रहा है एक बांकपन।

धरा की चूनरी पे पीत पुष्प हैं टंके हुए,
हरे-भरे से खेत आज ख़ुद में ही हुए मगन।

मची हुई है धूम ज्यों अंबीर और गुलाल की,
हरेक दिल पे छा गया है आज फागुनी चलन।

खुशी से भर उठे सभी, दुखों के तार काट कर,
तमस तभी से मिट गया, हुई जो होलिका दहन।

न सूद में, न ब्याज में, उधार में न कर्ज़ में
मिली है धूप फागुनी, खिला है प्रीति का सुमन।

हों रंगीले मेघ, "वर्षा'' फागुनी रहे सदा,
एकता के रंग में,  रंगा रहे मेरा वतन ।



रविवार, मार्च 08, 2020

08 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष : नारी को सम्मान दो - डॉ. वर्षा सिंह

Dr Varsha Singh

     अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर आज मेरी ताज़ा ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 08 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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नारी को सम्मान दो
        - डॉ. वर्षा सिंह

मां,भाभी है, बहन है नारी, सदा इसे सम्मान दो।
मानव जीवन पाया है तो मानवता को मान दो।

होली और दिवाली हमको सदा यही सिखलाते हैं
धर्म हमारा मानवता है, इसे नई पहचान दो

आपस में सद्भभाव बढ़ाना, मिलजुल कर हमको रहना
हर चेहरे को अपनेपन की, इक मीठी मुस्कान दो

भारत देश हमारा, इस पर गर्व सदा है, सदा रहेगा
आंच न आए कभी देश पर, इस पर अपनी जान दो

पर्यावरण बचाने का भी तो दायित्व हमारा है
पौधारोपण कर धरती को "वर्षा" जीवनदान दो
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#ग़ज़लवर्षा
#युवाप्रवर्तक


शनिवार, मार्च 07, 2020

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर ग़ज़ल : औरतें - डॉ. वर्षा सिंह


     अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर मेरी ताज़ा ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 06 मार्च 2020 में स्थान मिला है।
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 औरतें
                 - डॉ. वर्षा सिंह

सागर की लहर, झील का पानी हैं औरतें।
बहती  हुई नदी  की  रवानी   हैं   औरतें।

दुनिया की हर मिसाल में शामिल हैं आज ये
‘लैला’ की, ‘हीर’ की जो कहानी  हैं औरतें।

इनका लिखित स्वरूप महाकाव्य की तरह
वेदों  की  ऋचाओं-सी  ज़ुबानी हैं औरतें।

मिलती हैं  जब कभी ये सहेली के रूप में
यादों  की वादियों-सी  सुहानी  हैं  औरतें।

‘मीरा’ बनी कभी,  तो ‘कमाली’ बनी कभी
‘वर्षा’  कहा  सभी ने - ‘सयानी हैं औरतें’।
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#ग़ज़लवर्षा


शुक्रवार, मार्च 06, 2020

"ग़ज़ल जब बात करती है" का विमोचन - डॉ. वर्षा सिंह


       मेरे छठवें ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" का विमोचन समारोह रविवार दिनांक 16 फरवरी 2020 को आदर्श संगीत महाविद्यालय में संपन्न हुआ।श्यामलम् द्वारा आयोजित इस गरिमामय आयोजन में मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि निर्मल चंद निर्मल ने कहा कि वर्षा सिंह हिंदी की श्रेष्ठ ग़ज़लकार तो हैं ही, साथ ही उन्होंने सागर के कवि लेखकों को अपनी कलम से उजागर किया है। सागर के किस कवि में क्या गहराई है, वर्षा सिंह के पास इसका अनुमानित नाप है। आचरण समाचार पत्र में उनका स्तंभ इसका प्रमाण है।डॉ.हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.सुरेश आचार्य ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि डॉ.वर्षा सिंह के ग़ज़ल संग्रह "ग़ज़ल जब बात करती है" में उनकी समाज चिंता, पर्यावरण की परवाह, क्षय होते हुए मानव मूल्य और आधुनिकता के चक्कर में सांस्कृतिक मूल्यों को चोट पहुंचाने की तकलीफ को साफ पहचाना जा सकता है। एक अच्छी रचनाकार होने के नाते उन्हें  भारतीयता की गहरी पहचान है।प्रेम,विरह और चिंताएं उनकी रचनाओं में स्पष्ट पहचानी जा सकती हैं। वे देश की बड़ी कवयित्रियों में शामिल हैं। बुंदेलखंड भी उनकी रचनाओं से झांकता है।हमें उनसे बड़ी उम्मीदें हैं।



इस अवसर पर डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया के समीक्षा आलेख का वाचन करते हुए विशिष्ट अतिथि साहित्यकार डॉ.महेश तिवारी ने कहा कि सामाजिक मूल्यों के विखंडन की दौड़ में प्रेम का संदेश देती हुई डॉ.वर्षा सिंह की ग़ज़लें खरे सोने जैसी प्रमाणित हैं। ये बुद्धि कौशल से साहित्य पीठिका पर रखे गये अप्रतिम सृजन का शानदार स्वरूप हैं, जो पाठक के मन को प्रभावित करती हैं,अपना मुरीद बना लेती हैं।


सागर विश्वविद्यालय में संस्कृत विभाग के सहा. प्राध्या. डॉ शशि कुमार सिंह ने संग्रह पर समीक्षा करते हुए कहा कि डा. वर्षा सिंह का ग़ज़ल संग्रह " गजल जब बात करती है" वर्तमान हिन्दी ग़ज़ल का एक श्रेष्ठ निदर्शन है।  यह ग़ज़ल संग्रह ग़ज़ल के मानकों पर खरा उतरता है तथा प्रेम के साथ साथ मनुष्यता का संदेश भी देता है। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक भावप्रकाशन इस ग़ज़ल संग्रह की प्रमुख विशेषता है।
आदर्श दुबे ने समीक्षा आलेख में वर्षा जी की शायरी को भीड़ से अलग बताते हुए कहा कि उनकी शायरी जहां रिवायती लहज़े को आसानी से,आसान ज़बान में ढालती है वहीं नए ज़दीद लहज़े और नए प्रयोगों को भी अपने ढंग से अपनाती है।


कार्यक्रम में ग़ज़लकार डॉ. वर्षा सिंह का आयोजक संस्था श्यामलम् द्वारा शाल,श्रीफल,पष्पगुच्छ भेंट कर अभिनंदन  किया गया।कवि आर.के.तिवारी ने स्वरचित अभिनंदन गीत का गायन किया।श्यामलम् सचिव कपिल बैसाखिया ने वर्षा सिंह का जीवन परिचय वाचन किया।

डॉ.वर्षा सिंह ने श्यामलम् संस्था के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रत्येक शहर में ऐसी जागरूक संस्थाएं हों तो साहित्य पर कभी कोई संकट नहीं आ सकता। अपनी ग़ज़लों के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि मैं समाज में जो कुछ घटित होता देखती हूं उसे ही अपनी ग़ज़लों में पिरोती हूं। इसीलिये मुझे आम बोलचाल की भाषा में ग़ज़ल कहना पसंद है।
कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती की पूजा अर्चन तथा बाल सरस्वती सुश्री ऐश्वर्या दुबे द्वारा सरस्वती वंदना गायन से हुआ।डॉ.सुश्री शरद सिंह,डॉ.चंचला दवे,सुनीला सराफ,नंदिनी चौधरी,नीतू नयन,ममता भूरिया, श्रीमती चतुर्वेदी, नम्रता फुसकेले व देवकी भट्ट नायक दीपा ने अतिथियों को पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया श्यामलम् अध्यक्ष उमाकांत मिश्र ने स्वागत उद्बोधन दिया।कवि राधा कृष्ण व्यास ने अंजीर का पौधा भेंट किया।बुंदेलखंड हिन्दी साहित्य संस्कृति विकास मंच द्वारा भी सम्मान किया गया।
कार्यक्रम का गरिमामय संचालन डॉ.अंजना चतुर्वेदी तिवारी ने किया तथा सुश्री डॉ.शरद सिंह ने आभार प्रदर्शन किया।



इस अवसर पर शिवशंकर केसरी,पं.शंभुदयाल पाण्डेय,डॉ.जीवनलाल जैन,डॉ.उदय जैन, लक्ष्मी नारायण चौरसिया, प्रो.के.एस.पित्रे, डॉ. आशुतोष मिश्र,डॉ.कन्हैया त्रिपाठी,डॉ.आशीष द्विवेदी,अंबिका यादव, डॉ.नवनीत धगट,हरी सिंह ठाकुर,डॉ.राकेश शर्मा,डॉ.रामरतन पांडेय, डॉ.सतीश पांडेय, डॉ.भुवनेश्वर तिवारी,के.एल. तिवारी अलबेला,डॉ. ऋषभ भारद्वाज,रवींद्र दुबे कक्का,मुकेश निराला, राजेंद्र दुबे कलाकार,पप्पू तिवारी,पूरन सिंह राजपूत, डॉ.अरविंद गोस्वामी,शमीम बानो,डॉ.अभिषेक ऋषि,आर.के.चतुर्वेदी,आज्ञा संतोष तिवारी, अयाज़ सागरी,एम.शरीफ, असरार अहमद, डॉ.एस.आर.श्रीवास्तव,सुबोध श्रीवास्तव, विश्वनाथ चौबे, पुष्पदंत हितकर, ज.ला.राठौर प्रभाकर,‌ टी.आर.त्रिपाठी,पुष्पेंद्र दुबे,वीरेंद्र प्रधान,हरी शुक्ला,कुंदन पाराशर, अशोक तिवारी अलख, शैलेष‌ शुक्ला,पैट्रिस फुसकेले, मितेन्द्र सिंह सेंगर,रमेश दुबे,भगवान दास रायकवार,देवीसिंह राजपूत,जी.एल.छत्रसाल, अखिलेश शर्मा,अतुल श्रीवास्तव,अंबर चतुर्वेदी चिंतन,गोविंद दास नगरिया,प्रभात‌ कटारे नलिन जैन, गणेश चौरसिया सहित बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।