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मंगलवार, सितंबर 07, 2010
नभ व्यथा का
- डॉ. वर्षा सिंह
नयन में उमड़ा जलद है।
नभ व्यथा का भी वृहद है।
आंसुओं से तर-बतर है
यह कथानक भी दुखद है।
इस दफा मौसम अजब है
आग मन में तन शरद है।
दोष क्या दें अब तिमिर को
रोशनी को आज मद है।
नींद को कैसे मनाएं
ख्वाब की खोई सनद है।
त्रासदी ‘वर्षा’ कहें क्या?
शत्रु अब तो मेघ खुद हैं।
गुरुवार, सितंबर 02, 2010
तुम मेरे साथ चल के तो देखो
- वर्षा सिंह
तुम मेरे साथ चल के तो देखो।
रोशनी में भी ढल के तो देखो।
मायने ज़िन्दगी के बदलेंगे
बन के ‘वर्षा’ पिघल के तो देखो।
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तुम मेरे साथ चल के तो देखो।
रोशनी में भी ढल के तो देखो।
मायने ज़िन्दगी के बदलेंगे
बन के ‘वर्षा’ पिघल के तो देखो।
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