Dr. Varsha Singh |
शिव कहां !
- डॉ. वर्षा सिंह
कौन पढ़ता है किताबें आजकल
वक़्त कहता 'फोर-जी' के साथ चल
कांपती हैं पत्तियां बीमार-सी
अब हवा भी वायरस से है विकल
इन दिनों लड़की से कहते हैं सभी
हो गई है शाम, घर से मत निकल
चाहता कोई ज़रा झुकना नहीं
भूल थी, संवाद से निकलेगा हल
देखिए, फागुन में बारिश हो रही
कर लिया मौसम ने शायद दल-बदल
आंसुओं की नींव पर बनता नहीं
ख़ुशनुमा सा मुस्कुराहट का महल
जो स्वयं पर ही नहीं करते यकीं
वो कभी भी हो नहीं पाते सफल
सोचिए, कैसे मिले सदभावना
द्वेष बो कर, द्वेष की मिलती फ़सल
दौर कैसा आ गया है, देखिए !
दोस्तों में अब नहीं होती चुहल
शिव कहां ! अब पूछती व्याकुल धरा
जो स्वयं ही कण्ठ में धारे गरल
बूंद "वर्षा" की, सभी की प्यास को
तृप्ति देती है सदा निर्मल तरल
-----------
(मेरे ग़ज़ल संग्रह "सच तो ये है" से)