मंगलवार, अगस्त 22, 2017

साथी .....

चार दिनों का मेला, साथी
क्या-क्या हमने झेला, साथी
हरदम मात मिली क़िस्मत को
खेल समय ने खेला साथी
सपने अक़्सर बहा ले गया
मज़बूरी का रेला साथी
ख़ूब बटोरी शोहरत लेकिन
हाथ नहीं है धेला, साथी
एक अकेला तन्हा दिल है
"वर्षा" का अलबेला साथी
              - डॉ वर्षा सिंह

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