शुक्रवार, मई 17, 2019

ग़ज़ल ... सोचते तो हैं मगर - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


सोचते तो हैं मगर, कुछ बोल पाते हैं नहीं।
बंद दरवाज़े हृदय के खोल पाते हैं नहीं।

सच को परदे में रखें, हम ये नहीं कर पायेंगे
झूठ को हम चाशनी में घोल पाते हैं नहीं।

जी-हज़ूरी से रहे हैं दूर कोसों उम्र भर
चाटुकारी के लिए हम डोल पाते हैं नहीं।

हर तरफ बिक्री-खरीदी, हर तरफ मक्कारियां
कोई भी शै हम यहां, अनमोल पाते हैं नहीं।

कै़द जिनको कर लिया हो ज़िन्दगी ने बेवज़ह
आखिरी दम तक कभी पैरोल पाते हैं नहीं।

जो न "वर्षा" कर सके अभिनय किसी भी मंच पर
वक़्त के नाटक में इच्छित रोल पाते हैं नहीं।

       - - डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा

गुरुवार, मई 16, 2019

ग़ज़ल... दिल तो हुआ ग़ुलाम - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


दिन डूबा और आई  शाम।
याद दिलाने फिर वो नाम।

उसने ही मुंह फेर लिया,
जिस पर वारी उम्र तमाम।

मेल, व्हाट्सएप चेक किये,
आया ना उसका पैगाम।

इश्क़ हुआ तब ये जाना,
इश्क़ का है ऐसा अंजाम।

ख़्वाब संजोए सत्ता के
"वर्षा" दिल तो हुआ ग़़ुलाम।

       - डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा


बुधवार, मई 15, 2019

ग़ज़ल..... सोचो क्या होगा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


सोचो क्या होगा !
                     - डॉ. वर्षा सिंह

टूट गए सब धागे, सोचो क्या होगा !
बचे नहीं गर रिश्ते, सोचो क्या होगा !

उमड़ रहे हैं काले बादल पश्चिम से,
हाथ नहीं हैं छाते, सोचो क्या होगा !

धुंधलापन मन पर भी हावी लगता है,
आंखों फैले जाले, सोचो क्या होगा !

जमे हुए थे जो ''अंगद'' का पांव बने,
बदल लिए हैं पाले, सोचो क्या होगा।

भंवर मिले तो चप्पू साथ नहीं देते,
गर फंसने पर जागे, सोचो क्या होगा।

सांझ खड़ी है सिर पर, दीपक शेष नहीं,
गहरे होते साये, सोचो क्या होगा।

पानी देने में बरती कोताही तो,
सूखे सारे पत्ते, सोचो क्या होगा !

रात जुन्हाई की न समझी कद्र ज़रा
दिन में दिखते तारे, सोचो क्या होगा !

मौसम के ये खेल न "वर्षा" समझी है,
जीती बाजी हारे, सोचो क्या होगा !

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सोचो क्या होगा - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा

मंगलवार, मई 14, 2019

ग़ज़ल... छोटी सी मेज़ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh


       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 14 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=14724
ग़ज़ल
वह मेरी छोटी सी मेज़ !
                     - डॉ. वर्षा सिंह
कितने राज़ छुपाये रहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
मुझको सखी-सहेली लगती, वह मेरी छोटी सी मेज़।

उसके भीतर आजू-बाज़ू, चार दराज़ें सिमटी थीं
जिनमें मेरा गोपन रखती, वह मेरी छोटी सी मेज़।

वर्षों बीत गए जब मां ने इक दिन मुझको डांटा था
मेरे सारे आंसू गिनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।

पहला प्रेम पत्र जब लिक्खा, लिख- लिख फाड़ा कितनी बार
मेरे असमंजस सब सहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।

अब पीछे वाले कमरे में, इक कोने में रहती है
स्मृतियों का हिस्सा बनती, वह मेरी छोटी सी मेज़।

"वर्षा" मोबाइल ने छीना, "मसि-कागद'' पर लेखन को,
कुछ भी नहीं किसी से कहती, वह मेरी छोटी सी मेज़।
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#ग़ज़लवर्षा


ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़लयात्रा

रविवार, मई 12, 2019

ग़ज़ल .... मातृ दिवस पर विशेष ... मां से बढ़ कर कौन - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

      मातृ दिवस (Mother's Day) पर  आज मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 12 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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ग़ज़ल
मां से बढ़ कर कौन जगत में !
                     - डॉ. वर्षा सिंह

जब -जब मन बेचैन हुआ है।
तब -तब मां को याद किया है।

मां ने सबको अमृत बांटा,
खुद चुपके से ज़हर पिया है।

जीवन की दुर्गम राहों में,
मां की हरदम मिली दुआ है।

मां से बढ़ कर कौन जगत में !
ईश्वर मां से नहीं बड़ा है।

ममता की  "वर्षा" करती मां,
मां का आंचल सदा भरा है।     
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#ग़ज़लवर्षा

Happy Mother's Day # GHAZALYATRA

शुक्रवार, मई 10, 2019

ग़ज़ल .... त्रासदी है इश्क़ - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 10 मई 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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ग़ज़ल

त्रासदी है इश्क़
                     - डॉ. वर्षा सिंह

अजनबी शहर है, रात दिन है अजनबी।
चुभ रहा ख़्याल में वो पिन है अजनबी।

लग रही है रोशनी भी ख़ौफ़नाक सी 
अंधकार का सफ़र, कठिन है अजनबी।

जबकि ज़िन्दगी बिता दी इनके वास्ते,
रंग चाहतों का क्यों मलिन है अजनबी।

गूंथ कर गया वो मेरी चोटियों में जो,
आज  लग रहा वही रिबन है अजनबी।

दुख जिसे मिले हरेक मोड़ पर यहां,
सुख भरा हुआ हरेक छिन है अजनबी।

त्रासदी है इश्क़, "वर्षा" क्या कहें किसे
अजनबी वसुंधरा, गगन है अजनबी। 

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#ग़ज़लवर्षा

त्रासदी है इश्क़ - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा

गुरुवार, मई 09, 2019

मातृ दिवस यानी मदर्स डे (Mother’s Day) .... और शायरी

Dr. Varsha Singh
या देवी सर्वभूतेषु मातृ-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

अर्थात् जो देवी सभी प्राणियों में माता के रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार नमस्कार है।

मातृ दिवस यानी मदर्स डे  (Mother’s Day)  मां के प्रति समर्पित एक पूरा दिन । प्रत्येक वर्ष मई माह के दूसरे रविवार के दिन पूरे विश्व में मदर्स डे मनाया जाता है। इस वर्ष मदर्स डे 12 मई को है।
किसी ने कहा है-
मांगने पर जहां पूरी हर मन्नत होती है
मां के पैरों में ही तो वो जन्नत होती है

 मां अपने शिशु को पूरे नौ माह अपनी कोख में रखने के बाद असहनीय पीड़ा सहते हुए उसे जन्म देती है और इस दुनिया में लाती है। इन नौ महीनों में शिशु और मां के बीच एक अदृश्य प्यार भरा गहरा रिश्ता बन जाता है। यह रिश्ता शिशु के जन्म के बाद साकार होता है और जीवन पर्यन्त बना रहता है। मां और बच्चे का रिश्ता इतना प्रगाढ़ और प्रेम से भरा होता है, कि बच्चे को जरा ही कष्ट होने पर भी मां बेचैन हो उठती है। वहीं कष्ट के समय बच्चा भी मां को ही याद करता है। मां का दुलार और प्यार भरी पुचकार ही बच्चे के लिए दवा का कार्य करती है। इसलिए ही ममता और स्नेह के इस रिश्ते को संसार का सुन्दर रिश्ता कहा जाता है।

मदर डे या मातृ दिवस वेस्ट वर्जीनिया में एना जोविस द्वारा समस्त माताओं और उनके गौरवमयी मातृत्व के लिए तथा विशेष रूप से पारिवारिक और उनके परस्पर संबंधों को सम्मान देने के लिए आरंभ किया गया था । कुछ विद्वानों का मानना है कि यह ग्रीस से आरंभ हुआ है कहा जाता है कि पहले स्यबेले ग्रीक देवताओं की मां थी । उनके सम्मान में यह दिवस मनाया जाता था।
Happy Mother's Day #GhazalYatra

भारत में भी मातृ दिवस मां के प्रति अपनी श्रद्धा और स्नेह व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है।
अनेक रचनाकारों, शायरों ने अपनी शायरी में मां के प्रति अपनी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी है।
यथा, किसी ने दोहों के रूप में अपने मन की बात कही है....

स्वारथ है कोई नहीं, ना कोई व्यापार।
माँ का अनुपम प्रेम है, शीतल सुखद बयार।।

जननी को जो पूजता, जग पूजै है सोय।
महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय।।

माँ तो जग का मूल है, माँ में बसता प्यार।
मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको सब संसार।।

शायर मुनव्वर राना ने मां को केन्द्रित कर अनेक शेर कहे हैं, बानगी देखें ....

अभी ज़िंदा है माँ मेरी मुझे कुछ भी नहीं होगा
मैं घर से जब निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है
    - मुनव्वर राना

....और मुनव्वर राना का एक और मशहूर शेर है...

बर्बाद कर दिया हमें परदेस ने मगर
माँ सब से कह रही है कि बेटा मज़े में है
     - मुनव्वर राना

मशहूर शायर कैफ़ भोपाली मां की गोद को सबसे सुंदर समय बताते हुए कहते हैं....

माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले
         -  कैफ़ भोपाली

मां के प्यार के प्रति निदा फ़ाज़ली का यह शेर बहुत दिलचस्प है....

मैं रोया परदेस में भीगा माँ का प्यार
दुख ने दुख से बातें की बिन चिट्ठी बिन तार
        -निदा फ़ाज़ली
Happy Mother's Day #GhazalYatra

आलोक श्रीवास्तव की शायरी में मां इस तरह शामिल है....
मुझे मालूम है मां की दुआएं साथ चलती हैं,
सफ़र की मुश्किलों को हाथ मलते मैंने देखा है
       -आलोक श्रीवास्तव

अख़्तर नज़्मी का मां के प्रति लगाव इस शेर में बख़ूबी झलकता है....
भारी बोझ पहाड़ सा कुछ हल्का हो जाए
जब मेरी चिंता बढ़े माँ सपने में आए
    - अख़्तर नज़्मी

इस ब्लॉग की लेखिका यानी मेरे कुछ शेर देखें, जो मां के प्रति समर्पित हैं....

मुझको घर - बार बुलाती हैं वो मां की आंखें ।
दे के थपकी -सी सुलाती हैं वो मां की आंखें ।

वही चौपाई,  वही कलमा, वही हैं वाणी
अक्स जन्नत का दिखाती हैं वो मां की आंखें ।

चाह कर भी मैं  कभी दूर नहीं हो  पाती
बूंद ‘वर्षा’ की सजाती हैं वो मां की आंखें ।
    -डॉ. वर्षा सिंह

...और यह ग़ज़ल भी मां के लिए.....

नेह भरा वातायन देती।
मां सारे स्वर-व्यंजन देती।

जीने का रस्ता दिखलाती ,
संस्कार का कंचन देती।

मां महकाती जीवन पथ को,
आशीषों  का गुलशन देती।

मां की ममता अमृत जैसी,
हर पल नूतन जीवन देती।

कैसा भी हो दौर समय का,
मां हरदम अपनापन देती।

'वर्षा' मां को नमन कर रही,
मां ममता का चन्दन देती।
        - डॉ वर्षा सिंह


डॉ. (सुश्री) शरद सिंह ने मां के प्रति अपनी भावनाएं इस तरह व्यक्त की हैं.....

मां की आशीषों से बढ़ कर और नहीं कुछ होता है।
 मां का आंचल जिसे मिले  वो  मीठी नीदें सोता है ।
        - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
शरद कहती हैं...

सारे जग में सबसे बेहतर मां का आंचल
तेज धूप में जैसे हो ममता का बादल
       - डॉ. (सुश्री) शरद सिंह

नवाज देवबंदीका यह शेर मां की ममता के चरम को दर्शाने वाला है...
भूके बच्चों की तसल्ली के लिए
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक
       - नवाज देवबंदी
Happy Mother's Day #GhazalYatra

शायर दिगबंर नासवा के ये शेर देखें...

सहारा बे-सहारा ढूंढ लेंगे।
मुकद्दर का सितारा ढूंढ लेंगे।

जो माँ की उँगलियों में था यकीनन
वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे।
       - दिगबंर नासवा

अशोक अंजुम मां के प्यार को सबसे अलग व्याख्यायित करते हैं...

पत्नी, बहन, भाभियाँ, ताई, चाची, बुआ, मौसीजी
सारे रिश्ते एक तरफ हैं लेकिन माँ का प्यार अलग !
         - अशोक अंजुम

रूपचन्द्र शास्त्री " रूप " के इन दोहों में मां की महिमा का सुंदर वर्णन है....

वो घर स्वर्ग समान है, जिसमें माँ का वास।
अब मेरा माँ के बिना, मन है बहुत उदास।।

बचपन मेरा खो गया, हुआ वृद्ध मैं आज।
सोच-समझकर अब मुझे, करने हैं सब काज।।

तारतम्य टूटा हुआ, उलझ गये हैं तार।
कहाँ मिलेगा अब मुझे, माता जैसा प्यार।।

सूना घर का द्वार है, सूना सब संसार।
माता के बिन लग रहे, फीके सब त्यौहार।।
        - रूपचन्द्र शास्त्री " रूप "

शुभम मिश्रा मां - पिता के प्रति अपने उद्गार इस प्रकार प्रकट करते हैं....

भुला के नींद अपनी सुलाया हमको,
गिरा के आँसू अपने हँसाया हमको,
दर्द कभी न देना उन हस्तियों को,
खुदा ने माँ-बाप बनाया जिनको।
             - शुभम मिश्रा

मातुश्री डॉ. विद्यावती "मालविका" के चरणों में नमन - डॉ. वर्षा सिंह
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शनिवार, मई 04, 2019

ग़ज़ल... ज़िद्दी चाहत - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 04 मई 2019 में स्थान मिला है।
    युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में मेरी ग़ज़ल इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...

http://yuvapravartak.com/?p=14366

ग़ज़ल
          - डॉ. वर्षा सिंह

बेहतर होगा उन गलियों से हम चुपचाप गुज़र जायें।
जिनमें क़दम बढ़ाते ही कुछ ख़्वाब पुराने याद आयें ।

इन्द्रजाल उसका है ऐसा, दिल जिसको दे बैठे हम,
भीड़भाड़ वाली जगहों में  ख़ुद को हम तन्हा पायें।

तिनका-तिनका जोड़ परिन्दे, अपना नीड़ बनाते हैं
अक्सर डूब अहम में अपने, हम मंज़िल को ठुकरायें।

कभी बगावत करता है मन, कभी शरारत करता है,
मन ही मन रो लेते हैं हम, मन ही मन हम मुस्कायें।

अग्नि शिखर को छू लेने की, जिसने ये जिद ठानी है,
इस ज़िद्दी चाहत को "वर्षा" आखिर कैसे बहलायें।
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#ग़ज़लवर्षा

ग़ज़ल... डॉ. वर्षा सिंह @ ग़ज़ल यात्रा


बुधवार, मई 01, 2019