सोमवार, सितंबर 30, 2019

ग़ज़ल ... ग़ज़ल जब बात करती है - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
विशेष बात यह है कि मेरी यह ग़ज़ल मेरे प्रकाशनाधीन आगामी गजल संग्रह की शीर्षक ग़ज़ल है। जी हां, मेरे प्रकाशनाधीन ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक है - "ग़ज़ल जब बात करती है"
      मित्रों, यदि आप चाहें तो मेरी इस ग़ज़ल को इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=19347

युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏

ग़ज़ल

ग़ज़ल जब बात करती है
          - डॉ. वर्षा सिंह

ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं
ग़मों की स्याह रातों में खुशी के दीप जलते हैं

सुलझते हैं कई मसले, मधुर संवाद करने से
भुलाकर दुश्मनी मिलने के फिर पैगाम मिलते हैं

जहां हो राम का मंदिर, वहीं अल्लाह का घर हो
यक़ीं मानो, तभी चैनो-अमन के फूल खिलते हैं

उठायी हो शपथ जिसने मनुजता को बचाने की
उसी के पांव मंज़िल की तरफ़ दिन-रात चलते हैं

समझना चाहिए यह सच, हमारे हर पड़ोसी को
जो टालो शांति से टकराव भी चुपचाप टलते हैं

मिटा कर जंगलों को, ताप धरती का बढ़ा डाला
ध्रुवों पर ग्लेशियर भी आज तेजी से पिघलते हैं

बुझेगी प्यास फिर कैसे, जो पानी न सहेजेंगे
 बिना 'वर्षा' कई जंगल मरुस्थल में बदलते हैं
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ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह

मंगलवार, सितंबर 24, 2019

समकालीन महिला ग़ज़लकार संकलन और मेरी ग़ज़लें - डॉ. वर्षा सिंह


Dr. Varsha Singh

वरिष्ठ कवि एवं विद्वान सम्पादक हरेराम समीप द्वारा सम्पादित "समकालीन महिला ग़ज़लकार " संकलन में मेरे परिचय सहित मेरी ग़ज़लों के साथ ही बहन डॉ. (सुश्री) शरद सिंह की ग़ज़लों को भी सम्मिलित किया गया है।






Hareram Sameep 

http://www.aanch.org में विद्वान समीक्षक जयप्रकाश मिश्र द्वारा लिखी गई समीक्षा  "समकालीन महिला ग़ज़लकार : एक महत्वपूर्ण कृति" के प्रति जयप्रकाश मिश्र के प्रति हार्दिक आभार !!!


रविवार, सितंबर 22, 2019

ग़ज़ल... बेटी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 22 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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ग़ज़ल

            बेटी
                 - डॉ. वर्षा सिंह

इक करिश्मा-सा हर इक बार दिखाती बेटी।
धूप  में छांह  का अहसास कराती  बेटी।

वक़्त के साथ में  चलने का हुनर आता है
वक़्त के हाथ से  इक लम्हा चुराती बेटी।

गर्म  रिश्तों  की नई शाॅल बुना करती  है
सर्द  यादों के  निशानात मिटाती  बेटी।

फूल, खुश्बू तो कभी बन के हवा, पानी-सी
इक  नई राह  जमाने में  बनाती बेटी।

रोशनी मां की यही  और पिता का सपना
हर क़दम  पर नई उम्मीद जगाती बेटी।

नाम सिमरन हो, वहीदा हो  या कि हो ‘वर्षा’
प्यार के नूर से  दुनिया को सजाती बेटी।

http://yuvapravartak.com/?p=19032     
#ग़ज़लवर्षा

ग़ज़ल... बेटी - डॉ. वर्षा सिंह


शुक्रवार, सितंबर 13, 2019

ग़ज़ल .... हिन्दी की व्यथा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌺🙏

          मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
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ग़ज़ल

हिन्दी की व्यथा 
                 - डॉ. वर्षा सिंह

स्वार्थ में डूबे हुए हैं हाशिए
जर्जरित रिश्ते कोई कैसे सिए

मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए 

पर्वतों के पास तक पहुंचे नहीं
घाटियों ने खूब दुखड़े रो लिए

किस क़दर अंग्रेजियत हावी हुई
आप हिन्दी की व्यथा मत पूछिए 

सर्पपालन का अगर है शौक तो
आस्तीनों में न अपने पालिए

आजकल "वर्षा" रदीफ़ों की जगह
 अतिक्रमित करने लगे हैं काफ़िए

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ग़ज़ल... हिन्दी की व्यथा - डॉ. वर्षा सिंह # ग़ज़ल यात्रा

हिन्दी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं - डॉ. वर्षा सिंह


रविवार, सितंबर 08, 2019

ग़ज़ल... ओ मेरी नादान ज़िन्दगी - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

       मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 08 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
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ग़ज़ल
         ओ मेरी नादान ज़िन्दगी !
                  - डॉ. वर्षा सिंह

अब तो कहना मान ज़िन्दगी
सुख की चादर तान ज़िन्दगी

ढेरों आंसू लिख पढ़ डाले
रच ले कुछ मुस्कान ज़िन्दगी

अपनी मंजिल आप ढूंढ ले
ओ मेरी नादान ज़िन्दगी

रुठा- रुठी छोड़ अरे अब
दो दिन की मेहमान ज़िन्दगी

साथ किसी के कौन गया कब
इस सच को पहचान ज़िन्दगी

सारे मौसम इसके अनुचर
समय बड़ा बलवान ज़िन्दगी

हंसकर तय करने ही होंगे
सांसो के सोपान ज़िन्दगी

आह न निकले तनिक कंठ से
शिव बनकर विषपान ज़िन्दगी

"वर्षा" माटी का तन इस पर
करना मत अभिमान ज़िन्दगी
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#ग़ज़लवर्षा

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