कोई पूछे कि ये ग़ज़ल क्या है, तो मैं कह दूं कि दिल का दरिया है।
अपनी कहने और उसकी सुनने का, ख़ूबसूरत सा एक ज़रिया है।
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
कवयित्री, लेखिका डॉ. (सुश्री) शरद सिंह का यह शेर ग़ज़ल को परिभाषित करने वाला है। वैसे ये ग़ज़ल आख़िर है क्या ? तो इस प्रश्न के उत्तर में यही कहा जा सकता है कि यह काव्य की एक विधा है। चूंकि ग़ज़ल का अर्थ है प्रेमी-प्रेमिका का वार्तालाप अतः पहले गजल प्रेम की अभिव्यक्ति का सबसे सशक्त माध्यम थी, किन्तु धीरे-धीरे वक़्त के साथ इसमें बदलाव आया और प्रेम के अलावा अन्य विषय भी इसमें शामिल हो गए। ग़ज़ल फ़ारसी से उर्दू में आई, फिर उर्दू से हिन्दी में और फिर एक लम्बा भाषाई सफ़र तय करके क्षेत्रीय बोलियों में आ चुकी है। दुष्यंत कुमार ने अपनी हिन्दी ग़ज़लों से ग़ज़ल की दुनिया को नई पहचान दी। यानी अब वर्तमान में भाषाई बंधन से मुक्त हो चुकी ग़ज़ल।
'हफ़ीज़' अपनी बोली मोहब्बत की बोली
न उर्दू न हिन्दी न हिन्दोस्तानी
- हफ़ीज़ जालंधरी
आज मैं यहां प्रस्तुत कर रही हूं कुछ ऐसे शेर और ग़ज़लें, जिनमें शायर ने अपने शेरों में ग़ज़ल को अपनी तरह से पारिभाषित करने के साथ ही शायरी, ग़ज़ल और शेर शब्द का बड़ी ख़ूबसूरती से इस्तेमाल किया है।
हम से पूछो कि ग़ज़ल क्या है ग़ज़ल का फ़न क्या
चंद लफ़्ज़ों में कोई आग छुपा दी जाए
- जां निसार अख़्तर
बक़द्रे शौक़ नहीं ज़र्फे तंगना-ए-ग़ज़ल।
कुछ और चाहिये वसुअत मेरे बयां के लिये।
- मिर्जा ग़ालिब
अर्थात् मेरे मन की उत्कट भावनाओं को खुलकर व्यक्त करने में ग़ज़ल का पटल बड़ा ही संकीर्ण हैं। मुझे साफ साफ कहने के लिये किसी और विस्तृत माध्यम की आवश्यकता है।
अपने लहजे की हिफ़ाज़त कीजिए
शेर हो जाते हैं ना-मालूम भी
- निदा फ़ाज़ली
डाइरी में सारे अच्छे शेर चुन कर लिख लिए
एक लड़की ने मिरा दीवान ख़ाली कर दिया
- ऐतबार साजिद
मुझ को शायर न कहो 'मीर' कि साहब मैं ने
दर्द ओ ग़म कितने किए जम्अ तो दीवान किया
- मीर तक़ी मीर
हमसे पूछो के ग़ज़ल मांगती है कितना लहू
सब समझते हैं ये धंधा बड़े आराम का है
प्यास अगर मेरी बुझा दे तो मैं मानूं वरना ,
तू समन्दर है तो होगा मेरे किस काम का है
- राहत इंदौरी
हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता
- बशीर बद्र
छुपी है अन-गिनत चिंगारियाँ लफ़्ज़ों के दामन में
ज़रा पढ़ना ग़ज़ल की ये किताब आहिस्ता आहिस्ता
- प्रेम भण्डारी
मैं जिसे ओढ़ता बिछाता हूँ
वो ग़ज़ल आप को सुनाता हूँ
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल सी गुज़रती है
मैं किसी पुल सा थरथराता हूँ
हर तरफ़ एतराज़ होता है
मैं अगर रौशनी में आता हूँ
एक बाज़ू उखड़ गया जब से
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ
मैं तुझे भूलने की कोशिश में
आज कितने क़रीब पाता हूँ
कौन ये फ़ासला निभाएगा
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ
- दुष्यंत कुमार
ग़ज़ल में काफि़या-मतला मुहब्बत से सजाना है
हसीं लफ़्ज़ों की माला को करीने से बनाना है
जहाँ में प्यार का इज़हार करना है कठिन अब तो
अलग सूरत, अलग सीरत, बड़ा ज़ालिम जमाना है
बनावट में मिलावट के निराले ढंग मिलते हैं
सियासत ने सियासत से भरा अपना खज़ाना है
गुज़ारा भूख में जीवन जिन्होंने ग़ुरबतों में ही
ग़रीबों का बड़ी मुश्किल से बनता अशियाना है
नहीं टूटे कभी भी सिलसिला अशआर का इसमें
ग़जल में ‘रूप’ का मुश्किल हुआ मक्ता लगाना है
- डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
मैं ग़ज़ल की एक क़िताब हूं, मुझे साथ अपने रखा करो।
मिरी सांस-सांस है शायरी, मुझे तुम अदब से पढ़ा करो।
ये बहर की धूप है सुनहरी, ग़मे-ए-बारिशों से धुली हुई
इसे गर समझ ना पाओ तुम, ज़रा चांदनी में जला करो।
किसी रोज़ बैठो सुकून से, यूं ही हाथ, हाथ में डाल के
कभी अपने-आप से इस तरह, हरहाल तुम भी मिला करो।
मिरी चाहतों के क़ाफ़िए, हो भूल जाने का डर "शरद"
इन्हें नोटबुक की बजाए तुम, हथेलियों पे लिखा करो।
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
हुस्न माइल ब-सितम हो तो ग़ज़ल होती है
इश्क़ बा-दीदा-ए-नम हो तो ग़ज़ल होती है
फूल बरसाएँ कि वो हँस के गिराएँ बिजली
कोई भी ख़ास करम हो तो ग़ज़ल होती है
कभी दुनिया हो कभी तुम कभी तक़दीर ख़िलाफ़
रोज़ इक ताज़ा सितम हो तो ग़ज़ल होती है
दामन-ए-ज़ब्त छुटे चूर हो या शीशा-ए-दिल
हादसा कोई अहम हो तो ग़ज़ल होती है
शिकन-ए-गेसू-ए-दौराँ ही पे मौक़ूफ़ नहीं
उन की ज़ुल्फ़ों में भी ख़म हो तो ग़ज़ल होती है
दर्द इस पर भी न कम हो तो ग़ज़ल होती है
जाम हो मय हो सनम हो तो ग़ज़ल होती है
- नसीम शाहजहांपुरी
चाँद में है कोई परी शायद
इस लिए है ये चाँदनी शायद
लोग उस को मसीहा कहते थे
वैसे वो भी था आदमी शायद
दिल का दरवाज़ा खोल रक्खा है
यूँ ही आ जाएगा कोई शायद
साँस आती है साँस जाती है
इस को कहते हैं ज़िंदगी शायद
आप का ज़िक्र हो मुसलसल हो
बस यही तो है शाइ'री शायद
मेरे आँसू तुम्हारी आँखों में
अब भी बाक़ी है दोस्ती शायद
- पंकज सुबीर
दर्द में उम्र बसर हो तो ग़ज़ल होती है
या कोई साथ अगर हो तो ग़ज़ल होती है
तेरा पैगाम मगर रोज़ कहाँ आता है
तेरे आने की ख़बर हो तो ग़ज़ल होती है
यूँ तो रोते हैं सभी लोग यहाँ पर लेकिन
आँख मासूम की तार हो तो ग़ज़ल होती है
हिंदी उर्दू में कहो या किसी भाषा मे कहो
बात का दिल पे असर हो तो ग़ज़ल होती है
ग़ज़लें अख़बार की ख़बरों की तरह लगती है
हाँ तेरा ज़िक्र अगर हो तो ग़ज़ल होती है
- विजय वाते
मखमली से फूल नाज़ुक पत्तियों को रख दिया
शाम होते ही दरीचे पर दियों को रख दिया
भीड़ में लोगों की दिन भर हँस के बतियाती रही
रास्ते पर कब न जाने सिसकियों को रख दिया
इश्क़ के पैगाम के बदले तो कुछ भेजा नहीं
पर मेरी खिड़की पे उसने तितलियों को रख दिया
नाम जब आया मेरा तो फेर लीं नज़रें मगर
भीगती गजलों में मेरी शोखियों को रख दिया
चिलचिलाती धूप में तपने लगी जब छत मेरी
उनके हाथों की लिखी कुछ चिट्ठियों को रख दिया
- दिगम्बर नासवा
निष्कलुष प्यार की भीनी-भीनी महक, ताजगी जैसे बच्चों की निश्छल हँसी,
इसमें शामिल है माटी का कुछ सोंधापन, खूँ-पसीने से हमने सँवारी गजल।
प्यार मीरा घनानंद रसखान का, पीर इसमें कबीरा निराला की है,
आज है अपनी कुटिया की रानी बनी, कल भिखारिन-सी थी दसदुआरी गजल।
- वशिष्ठ अनूप
और अंत में मेरी यानी इस ब्लॉग की लेखिका डॉ. वर्षा सिंह की ग़ज़ल जो ग़ज़ल को ही समर्पित है -
स्याह रातों में इक रोशनी है ग़ज़ल
धूप में छांह बन कर मिली है ग़ज़ल
भिन्न मिसरे बंधे एक ही डोर से
एकता की अनोखी लड़ी है ग़ज़ल
फ़ासलों में दिलासा दिलाती है ये
वस्ल की वादियों में नदी है ग़ज़ल
दिल के बहलाव का सिर्फ़ सामान है
तो किसी के लिए ज़िन्दगी है ग़ज़ल
क़ाफ़ियों से रदीफ़ों की है दोस्ती
हर बहर में संवर कर सजी है ग़ज़ल
दर्द-दुख है, समस्या ज़माने की है
लोग कहते इसे ये नयी है ग़ज़ल
फ़ारसी, अरबी, उर्दू से हिन्दी हुई
अब बुंदेली के रंग में रंगी है ग़ज़ल
मीर, ग़ालिब से दुष्यंत के बाद तक
आज "वर्षा" के दिल में बसी है ग़ज़ल
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-09-2020) को "निर्दोष से प्रसून भी, डरे हुए हैं आज" (चर्चा अंक-3833) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आपकी इस सदाशयता के लिए हार्दिक आभार आदरणीय शास्त्री जी 🙏
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 23 सितंबर 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
पम्मी जी बहुत बहुत आभार आपका 🙏
हटाएंलाजवाब संकलन।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सुशील कुमार जोशी जी 🙏
हटाएंलाजवाब अद्भुत
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अनिता जी 🙏
हटाएंग़ज़ल पर अत्यंत सारगर्भित एवं महत्वपूर्ण लेख!!!
जवाब देंहटाएंइस लेख पर अर्ज़ है -
ग़ज़ल पे लेख लिखा जाये ये कम होता है
जो लिखे उस पे ग़ज़ल का भी करम होता है
हार्दिक बधाई एवं आभार !!!
वाह, शरद ! आपका यह शेर बहुत उम्दा है। आपने मेरे लेख को सराहा यह मेरे और मेरे इस लेख दोनों के लिए अत्यंत गर्व का विषय है।
हटाएंहार्दिक आभार आपका 🙏❤🙏
गज़ल की खुशबू और महक लिए ... गज़ल के नायाब शेर और गजलें हैं सभी ...
जवाब देंहटाएंशायराना ब्लॉग आज गज़ल गुनगुना रहा है ...
आभार मेरी गजल को इस लायक समझने का ...
शुक्रिया तहेदिल से आपका जो मेरे ब्लॉग पर आप आए...
हटाएं🙏💐🙏
वाह !आपका जवाब नहीं लाजवाब संकलन।
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद अनीता जी 🙏💐🙏
हटाएंFacebook पर भी अब से हम friend हैं 😊
एक से बढ़कर एक उन्दा गजलों का संकलन एक ही ब्लॉग पर,आनंद आ गया वर्षा जी ,सादर नमन आपको
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया कामिनी जी 💐🙏💐
हटाएंनरगिसी आँखों पर सजती दराज पलकें
जवाब देंहटाएंनूर के गौहर पे किरन सी रंगबाज पलके
मिलते हजार ठौर बाम ए सकूं नही मिलता
खुदगर्ज शहर में चाक दिल का रफू नही मिलता
पढ़िए ऐसी ही कुछ और रचनाये।
सतीश जी, धन्यवाद
हटाएंस्वरांजलि को follow कर लिया है मैंने।
😊🙏💐
आदरणीया डॉ वर्षा सिंह जी, नामाते👏! आपने गजलों का संकलन रखने के बाद अपनी गजल पेश की।
जवाब देंहटाएं"आज "वर्षा" के दिल में बसी है गजल!" आपकी गजल भी बहुत सुंदर है। साधुवाद!
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सादर!--ब्रजेन्द्रनाथ
सुस्वागतम् एवं हार्दिक आभार आदरणीय ब्रजेन्द्रनाथ जी 🙏💐🙏
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