हिन्दी दिवस (14 सितम्बर ) की हार्दिक शुभकामनाएं !!!!
यह सर्वविदित है कि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। हिंदी के महत्व को बताने और इसके प्रचार प्रसार के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के अनुरोध पर 1953 से प्रतिवर्ष 14 सितंबर को हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है।
हिन्दी में ग़ज़ल कहने, लिखने की एक लम्बी परम्परा है। तो आज मैं बात करना चाहती हूं उन हिन्दी-उर्दू ग़ज़लों, उन शेरों की, जिनमें हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम की भावना स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। यहां प्रस्तुत हैं ऐसी ही कुछ ग़ज़लें, कुछ शेर....
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
मैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिन्दी मुस्कुराती है।
उछलते खेलते बचपन में बेटा ढूंढती होगी,
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है,
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है,
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
तभी तो देख कर पोते को दादी मुस्कुराती है,
तभी जा कर कहीं माँ-बाप को कुछ चैन पड़ता है,
कि जब ससुराल से घर आ के बेटी मुस्कुराती है
चमन में सुबह का मंज़र बड़ा दिलचस्प होता है,
कली जब सो के उठती है, तो तितली मुस्कुराती है
हमें ऐ ज़िन्दगी तुझ पर हमेशा रश्क आता है,
मसाइल से घिरी रहती है, फिर भी मुस्कुराती है
मसाइल से घिरी रहती है, फिर भी मुस्कुराती है
- मुनव्वर राणा
------------------
यूँ तो समन्दरों से मेरी आशनाई है
प मेरी प्यास में भी अजब पारसाई है
राहत की बात ये है के बेदाग़ हाथ हैं
उरयानियत की हमने हिना कब लगायी है
छोटी को निगल जाएँ बड़ी मछलियां प मैं
ज़िंदा हूँ इनके दरमियाँ,क्या कम ख़ुदाई है ?
जा मैंने इस्तफादा किया अश्क से तो क्या
तुझको नमी क्या आँख की मैंने दिखाई है ?
इससे बड़ा मज़ाक़ तो होगा भी क्या भला
हिन्दू हैं,मुल्क हिंद है,हिंदी परायी है !
हमको तमाशबीन जो कहते हैं,हैफ़ है
और वो ? दुकान जिसने सदन में लगायी है
ये सोच कर के बात बिगड़ जाये ना कहीं
मैंने लबे-"हया" पे खमोशी सजाई है
प = पर
आशनाई= जान पहचान
पारसाई = सब्र ,संयम
इस्तफादा= फायदा उठाना
उर्यानियत =नग्नता
खमोशी= ख़ामोशी
- लता 'हया'
------------------------
दो- तिहाई विश्व की ललकार है हिंदी मेरी
माँ की लोरी व पिता का प्यार है हिंदी मेरी ।
बाँधने को बाँध लेते लोग दरिया अन्य से
पर भंवर का वेग वो विस्तार है हिंदी मेरी ।
सुर -तुलसी और मीरा के सगुन में रची हुई
कविरा और बिहारी की फुंकार है हिंदी मेरी ।
फ्रेंच , इंग्लीश और जर्मन है भले परवान पर
आमजन की नाव है, पतवार है हिंदी मेरी ।
चांद भी है , चांदनी भी , गोधुली- प्रभात भी ओ
हरतरफ बहती हुई जलधार है हिंदी मेरी ।
- रवीन्द्र प्रभात
-------------------
एक
अनगिन खूबी है हिंदी की, जितनी कहो गिनाते जाएं।
हिंदी की उन्नति से जागे, सब की उन्नति की आशाएं ।
भिन्न-भिन्न भाषा के अक्षर, इसमें एकाकार हो गए,
यही एकता सूत्र बनी है, यही मिटाती हर बाधाएं ।
दो
सोचती हूं कि हिन्दी कहां खो रही
बढ़ रहा आंग्ल का ही है खाता-बही
एक पर एक ग्यारह नहीं है पता
आज बच्चे ‘इलेवन’ को जानें सही
‘इंडिया’ जो कहें आधुनिक-सा लगे
नाम ‘भारत’ तो मानो पुरातन वही
चाह मन की ये सबसे कहूं आज मैं
काश! दुनिया की भाषा हो हिन्दी कभी
- डॉ. (सुश्री) शरद सिंह
------------------
भारत की पहचान है हिंदी
जन जन का सम्मान है हिंदी
लेकिन क्यूँ लगती बेघर ये
झेल रही अपमान है हिंदी।
अपनेपन की शीतल सरिता
प्यारी एक जुबान है हिंदी।।
दुनिया में लहराती परचम
भाषा एक महान है हिंदी।।
बहती उत्तर से दक्षिण तक
एका की पहचान है हिंदी।।
मान दिलाये दूर देश में
गीता है कुरान है हिंदी।।
रहती है बंधकर नियम में
भाषा में विज्ञान है हिंदी।।
जोश जगाती रणवीरों में
तिरंगे का मान है हिंदी।।
वीरों की गाती गाथा है
इस मिट्टी की जान है हिंदी।।
- सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’
------------------------
कितनी प्यारी ये मनभावन हिन्दी है
भारत की वैचारिक धड़कन हिन्दी है
जो लिखता हूँ हिन्दी में ही लिखता हूँ
मेरी ख़ुशियों का घर आँगन हिन्दी है
रफ़ी, लता,मन्नाडे को तुम सुन लेना
इन सबकी भाषा और गायन हिन्दी है
भारत में कितनी हैं भाषाएँ लेकिन
सारी भाषाओँ का यौवन हिन्दी है
पहले मैं अक्सर उर्दू में लिखता था
अब तो मेरा सारा लेखन हिन्दी है
मुझको तो लगती है ये भाषा अपनी
लेकिन कुछ लोगों की उलझन हिन्दी है
गर्व करे हर भारतवासी ये बोले
मेरे देश की भाषा पावन हिन्दी है
औरों की तो बात "समर" मैं क्या बोलूँ
मेरे माथे का तो चंदन हिन्दी है
- समर कबीर
----------------------
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलिसतां हमारा
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा
यूनान, मिस्र, रोमा सब मिट गए जहां से
अब तक मगर है बाकी नामों निशां हमारा
कुछ बात है कि हस्ती मिटती मिटाये
सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा
‘इक़बाल’ कोई महरम अपना नहीं जहां में
मालूम क्या किसी को दर्दे निहां हमारा
- अल्लामा इक़बाल
-----------------
संस्कारों की ये पिटारी है,
अपनी वाणी ही लाभकारी है ।
फूल अभिधा के लक्षणा लेकर,
व्यंजनाओं की ये तो क्यारी है ।
अपनी भाषा में बोलना सुनना,
भूलना भूल एक भारी है ।
ठेठ हिंदी का ठाठ तो देखो,
मन में रसखान के मुरारी है ।
कितनी भाषाएँ हैं मनोरम पर,
सब में हिंदी बड़ी ही प्यारी है ।
अपने घर में दशा पराई सी,
देख कर मन बहुत ही भारी है ।
इंडिया अब कहो न भारत को,
'आरज़ू' अब यही हमारी है ।
- अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
------------------
इन्ग्लिश से छिडी जग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी की है तरन्ग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी दिवस पे नेता ने हिन्दी मे ये कहा
हिन्दी है मदर टन्ग तो हिन्दी मे बोलिए
- वीनू महेन्द्र
-------------------
स्वार्थ में डूबे हुए हैं हाशिए
जर्जरित रिश्ते कोई कैसे सिए
मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए
पर्वतों के पास तक पहुंचे नहीं
घाटियों ने खूब दुखड़े रो लिए
किस क़दर अंग्रेजियत हावी हुई
आप हिन्दी की व्यथा मत पूछिए
सर्पपालन का अगर है शौक तो
आस्तीनों में न अपने पालिए
आजकल "वर्षा" रदीफ़ों की जगह
अतिक्रमित करने लगे हैं काफ़िए
- डॉ. वर्षा सिंह
-----------------------
वाह! लाज़वाब!!!
जवाब देंहटाएंहार्दिक धन्यवाद विश्वमोहन जी 🙏
हटाएंहार्दिक आभार आदरणीय डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 🙏💐🙏
जवाब देंहटाएंवर्षा जी का बहुत सुन्दर काव्य-संकलन ! केवल एक निवेदन -
जवाब देंहटाएंअल्लामा इक़बाल की कही पंक्ति -
'हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा'
में प्रयुक्त - 'हिंदी' हिंदी भाषा के लिए नहीं अपितु हिन्द में रहने वालों के लिए प्रयुक्त हुआ है.
आदरणीय गोपेश मोहन जैसवाल जी,
हटाएंजी हां, सही कहा आपने... किन्तु इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष एवं विचारणीय यह भी है कि हिंदी हम हिंदुस्तानियों की इस क़दर पहचान बनके उभरी थी उस ज़माने में कि शायर इक़बाल ने भारतीयों को "हिंदी" कहा 😊
आपकी टिप्पणी का सदैव स्वागत है। कृपा बनाए रखें।
सादर अभिवादन 🙏
लिपट जाता हूँ माँ से और मौसी मुस्कुराती है,
जवाब देंहटाएंमैं उर्दू में ग़ज़ल कहता हूं हिन्दी मुस्कुराती है।
बहुत ही प्यारा पठनीय अंक वर्षा जी , जिसकी जितनी तारीफ़ करूँ वो कम है |मुनव्वर राणा से लेकर आप तक सबकी गजलें लाजवाब हैं | और माननीय वीनू महेंद्र जी के इस सदा से कटाक्ष के तो क्या कहने !-
इन्ग्लिश से छिडी जग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी की है तरन्ग तो हिन्दी मे बोलिए
हिन्दी दिवस पे नेता ने हिन्दी मे ये कहा
हिन्दी है मदर टन्ग तो हिन्दी मे बोलिए
बहुत बहुत आभार और शुभकामनाएं|
आपको मेरी यह पोस्ट अच्छी लगी, यह मेरे लिए अत्यंत प्रसन्नता का विषय है।
हटाएंहार्दिक धन्यवाद रेणू जी 💐🙏💐
वर्षा जी, जी कविता "दो तिहाई विश्व की ...." को आपने सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’ के नाम से प्रकाशित किया है वह कविता श्री रवीन्द्र प्रभात की है। फोटो तो आपने श्री रवीन्द्र प्रभात जी का ही लगाया है, किन्तु कवि के नाम की जगह आपने सुरेन्द्र नाथ सिंह ‘कुशक्षत्रप’ अंकित कर दिया है, जहां श्री रवीन्द्र प्रभात का नाम होना चाहिए था। कृपया भूल सुधार लें।
जवाब देंहटाएंआदरणीया माला जी,
हटाएंहार्दिक धन्यवाद आपको कि आपने मेरी त्रुटि की ओर ध्यान दिलाया। यह त्रुटि मैंने सुधार ली है।
इसी प्रकार कृपाभाव बनाए रखें।
शुभकामनाओं सहित,
सादर,
डॉ. वर्षा सिंह