माटी की गंध

एक     
ऐसी परी मुसीबत भारी कोन बिधी जा  टरहे ।
मंहगाई ने कम्मर तोड़ी अब कोउ का   करहे ।

मौसम सोई हो गओ बैरी ,गट्ट-सट्ट कछु करहे
खड़ी फसल पे ओला बिछ गए, आसां सूख  परहे।

बसकारे  में  मेघ  न  बरसे , एक न फुंसा  फूटे
चार कोस लों जा के मुनिया , एक कंसड़िया भरहे।

उनको का  है, बे  तो  भैया ,राजा  बन के  बैठे
इते पिसी  के  लाने  भूको , अपनो अंसुआ  दरहे।

छांड़ किसानी  करी मजूरी, ‘वर्षाजा दिन  देखे
सोस जाई है, ढोरू -डंागर का खैहे, का   चरहे।
    
दो
काट  लए  जंगल  के जंगल , कर लई  अपने  मन  की ।
कर दओ मौसम फैल-फुट्ट सेा , सुध नई आत दिनन की ।
    
साउन-भांदों  धूरा  उड़  रईमाव- पूस  बसकारो
जी उमछा रओ है फागुन को , बिगरी चाल पवन की ।

सूक  रयी  है  नदिया , नरवा  सूक  रये  हैं  सारे
बूंद न बरकी , का  करहो  तब , प्यासी पूरी  जिनगी।

काट लए सागौना- महुआ , काट लए सब जरवा
काट लए कोहा के पेड़े , सूनी  कर  दई  धरती।

वर्षाकहती अभऊं चेेत लो , जतन करो कछु एसो
पौधा रोपो नए- नवेलेगति बदलो करमन की।
तीन     
काट दए महुआ , काटे सगोना।
काये मिटाय रये हरियर बिछोना।

हुइए न हारे, न हिरना, न तिंदुआ
चार, न चिंरौंजी ,खैर न तिगोना।

पानी न हुइए तो धान कहां हुइए
छूंछो रै जेहे भात को भगोना ।

बंदन का बांधबी, न हुइए अमुआ जो
होए न पलास तो, बनहे का दोना।      

वर्षा न हुइए तो सूखहे तलैया
बुंदिया न मिलहे , खर्चें से सोना।

चार
किस्मत की मुंदरी हिराई, मोरे राम।
सबलों ने नजरें फिराई , मोरे राम।

कछु के कछु होत रैत, समझई न आये
छिटकी दुफेरी जुन्हाई ,मोरे राम।

अपनी से अपनी पराई की जान के
अंखियन ने बुंदियां गिराई ,मोरे राम।

कोनउ के खेत कभंऊ काटे न छंाटे
काए फेर सबने सताई ,मोरे राम।

संझा संकारे लों सेवा तो करी भैात
करमन की गति न मुस्काई मोरे राम।

सुरसा मंहगाई ने चिंटिया सी जिनगी
पांव तरे धर के दबाई ,मोरे राम।

हमने तो सोच करी सुख आवे दोरे पे
पीरा ने सांकर खरकाई ,मोरे राम।

कोनउ को सूखी जिनगी न मिले कभऊं
वर्षाकी सुन लो दुहाई ,मोरे राम।

पांच     
बिन रुजगार फिरत है मोड़ा, मोड़ी फिरै कंवारी।
चार घरों को चूल्हा चौका करत फिरै  महतारी।

अंसुवन चौक पुराए अंगना ,ढिग पे धरे मनौती
दद्दा गए परदेस कमाने भली करें बनवारी।

खेत बिको औ बिकी झुपड़िया, बनो पनी को छप्पर
बनी बेसरम की दीवारें , पूस देत जड़कारी।

जेठ दुफैरी जलत मंूड़ पे, पंाव तरो अंगियारो
सूरज लगत रामधइ! ऐसो, धौंस देत पटवारी।

कौन चाउने खीर-पुड़ी, जो कुल्ल दिना के भूके
हरी धना की चटनी संगे, गांकर मिले करारी।

मड़ियादेव कृपा कर दवें , दुख के दिन टर जावें
सुख के लिंगे पहुंचबे की फेर, आय हमारी बारी।

वर्षाचाहे बरसे चारों ओर चैन को अमरित
चाये महल हो चाये झुपड़िया, जिनगी हो उजियारी।

 छः

किते हिरानो बोलो बिन्ना भुनसारे को सपनो।
खूबई हेरो मिलो तोउ न, उजियारे को सपनो।

कोनउ मिलो न ऐसो अब लों , धीर बंधाए जी को
धूरा में मिल जेहे आसों, दुखियारे को सपनो।

अंखियन से भओ दूर चंदरमा, बदरा छिपी तरइयां
जाने कैसो मंतर मारे, अंधियारे को सपनो।

हुन्ना- कपड़ा भए पुराने , खपरा सोई टूटे
कंपत दिख रई जिनगी जैसो, जड़कारे को सपनो।

जा दिन फसल कटे करमन की, मंडी में जा बिकहे
वा दिन पूरो हुइए वर्षाहरवारे को सपनो।

सात

कागा इक बार इते आओ न, जिनगी की सूनी अटरिया।
टाठी, न हुन्ना, न पिसिया धरी, लटकी भई टूटी किवरिया।

अब का बताएं तुमे, रामधई! दगा करी किस्मत ने कैसी
ले भागो कोनऊ चुराय के , मुंदरी के संगे उंगरिया।

हेरत भई सूख रई अंखियां, पउना न आए जुग बीत गए
सूखो रओ अंगना असाढ़ लों , बुंदिया न बरसी बदरिया।

जतन करी कैसउ बी बची रए, पीरा ने चीरो दबाए के
कोनउ का समझे हमाओ दुख , तार भई जी की चुनरिया।

वर्षाबरसे को सुख नइयां, फूट गई मेंड़ें तकदीर की
खरबूजा खाबे की कौन कहे, बदी नई जब लों कचरिया।

9 टिप्‍पणियां:

  1. गजलें अच्छी लगीं |
    बधाई |
    आशा

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  2. आदरणीया आशा जी. मेरे ब्लॉग पर आने के लिए आपको धन्यवाद. आपके विचारों से मेरा उत्साह बढ़ेगा.

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  3. बुंदेली गजलें पहली बार पदी पर आसानी से समझ में भी आई और अच्छी भी लगी. प्रतिभाशाली बहनें शरद सिंह और वरषा सिंह.
    meenakshi swami
    Indore

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  4. मैने भी बुन्देली गजलें पहली बार पढी। आनन्द आ गया। बधाई।

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  5. वर्षा जी,आपकी बुंदेली ग़ज़लें पढ़कर मन आनंदित हुआ...बहुत-बहुत बधाई.

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  6. ओमप्रकाश यती जी,
    मेरी बुंदेली ग़ज़लों को सराहने के लिए हार्दिक आभार...
    आपका आना सुखद लगा ....हार्दिक धन्यवाद !

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  7. सभी कुछ तो सुंदर लिखा है आपने,,,,,,बहुत बढिया

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  8. वेद प्रकाश जी,
    आपके विचारों ने मेरा उत्साह बढ़ाया है. हार्दिक धन्यवाद एवं आभार .... कृपया इसी तरह सम्वाद बनाए रखें।

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  9. वाह! शानदार पंक्तियाँ।

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