शुक्रवार, सितंबर 13, 2019

ग़ज़ल .... हिन्दी की व्यथा - डॉ. वर्षा सिंह

Dr. Varsha Singh

हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🌺🙏

          मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 13 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
मित्रों, यदि आप चाहें तो पत्रिका में इसे इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=18547


ग़ज़ल

हिन्दी की व्यथा 
                 - डॉ. वर्षा सिंह

स्वार्थ में डूबे हुए हैं हाशिए
जर्जरित रिश्ते कोई कैसे सिए

मैं नदी बन भी गई तो क्या हुआ
कौन जो सागर बने मेरे लिए 

पर्वतों के पास तक पहुंचे नहीं
घाटियों ने खूब दुखड़े रो लिए

किस क़दर अंग्रेजियत हावी हुई
आप हिन्दी की व्यथा मत पूछिए 

सर्पपालन का अगर है शौक तो
आस्तीनों में न अपने पालिए

आजकल "वर्षा" रदीफ़ों की जगह
 अतिक्रमित करने लगे हैं काफ़िए

http://yuvapravartak.com/?p=18547 
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