Dr. Varsha Singh |
मेरी इस ग़ज़ल को web magazine युवा प्रवर्तक के अंक दिनांक 30 सितम्बर 2019 में स्थान मिला है।
विशेष बात यह है कि मेरी यह ग़ज़ल मेरे प्रकाशनाधीन आगामी गजल संग्रह की शीर्षक ग़ज़ल है। जी हां, मेरे प्रकाशनाधीन ग़ज़ल संग्रह का शीर्षक है - "ग़ज़ल जब बात करती है"
मित्रों, यदि आप चाहें तो मेरी इस ग़ज़ल को इस Link पर भी पढ़ सकते हैं ...
http://yuvapravartak.com/?p=19347
युवा प्रवर्तक के प्रति हार्दिक आभार 🙏
ग़ज़ल
ग़ज़ल जब बात करती है
- डॉ. वर्षा सिंह
ग़ज़ल जब बात करती है, दिलों के द्वार खुलते हैं
ग़मों की स्याह रातों में खुशी के दीप जलते हैं
सुलझते हैं कई मसले, मधुर संवाद करने से
भुलाकर दुश्मनी मिलने के फिर पैगाम मिलते हैं
जहां हो राम का मंदिर, वहीं अल्लाह का घर हो
यक़ीं मानो, तभी चैनो-अमन के फूल खिलते हैं
उठायी हो शपथ जिसने मनुजता को बचाने की
उसी के पांव मंज़िल की तरफ़ दिन-रात चलते हैं
समझना चाहिए यह सच, हमारे हर पड़ोसी को
जो टालो शांति से टकराव भी चुपचाप टलते हैं
मिटा कर जंगलों को, ताप धरती का बढ़ा डाला
ध्रुवों पर ग्लेशियर भी आज तेजी से पिघलते हैं
बुझेगी प्यास फिर कैसे, जो पानी न सहेजेंगे
बिना 'वर्षा' कई जंगल मरुस्थल में बदलते हैं
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ग़ज़ल - डॉ. वर्षा सिंह |
बहुत ही उम्दा गज़ल है।
जवाब देंहटाएंआभार आपका साझा करने के लिए।
मेरी गज़ल भी पढ़ें प्लीज़- अंदाजे-बयाँ कोई और
कविता - शून्य पार
बहुत बहुत धन्यवाद रोहितास जी 🙏
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (02-10-2019) को "बापू जी का जन्मदिन" (चर्चा अंक- 3476) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत धन्यवाद एवं हार्दिक आभार डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' जी 🙏
जवाब देंहटाएंवाह !वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीया
जवाब देंहटाएंसादर
अनिता सैनी जी,
हटाएंआपके प्रति बहुत बहुत हार्दिक आभार 🙏